Monday, September 11, 2017

इतिहास जानने के स्रोत अथवा साधन

भारतवर्ष का प्राचीन इतिहास अत्यंत गौरव पूर्ण रहा है परंतु दुर्भाग्यवश हमें अपने प्राचीन इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए उपयोगी सामग्री बहुत कम मिलती है ।

प्राचीन भारतीय साहित्य में ऐसे  ग्रंथों का प्रभाव सा है जिन्हें आधुनिक परिभाषा में इतिहास की संज्ञा दी जा सके यह भी सत्य है कि हमारे यहां हेरोडोटस, थ्युसीडैडीज, अथवा लिवी जैसे इतिहास लेखक  नहीं उत्पन्न हुए  जैसा कि यूनान रोम आदि देशो में हुए

कतिपय  पाश्चात्य विद्वानों ने यह आरोपित किया की प्राचीन भारतीयो में  इतिहास बुद्धि अभाव था । लोएस डिकिंसन  के अनुसार हिंदू इतिहासकार नहीं थे ।भारत में मनुष्य प्रकृत  के समक्ष अपने को तुच्छ और असमर्थ पाता है फल स्वरुप उसमें नगण्यता तथा  जीवन की नीस्सारता जन्म लेती है उसे जीवन की अनुभूति एक भयानक  दु:स्वप्न के रूप में होती है और  दु:स्वप्न का कोई इतिहास नहीं होता।

मैकडोनाल्ड के अनुसार भारतीय साहित्य का दुर्बल पक्ष इतिहास है जिसका यहां अस्तित्व में ही नहीं था इसी विचारधारा का समर्थन एलफिन्सटन , फ्लीट, मैक्स मूलर , बी. ए. स्मिथ जैसे विद्वानों ने भी किया है 11 वीं सदी के मुस्लिम लेखक अलबरूनी ने इनसे मिलता जुलता विचार व्यक्त करते हुए लिखता है हिंदू लोग घटनाओं के ऐतिहासिक क्रम की ओर बहुत अधिक ध्यान नहीं देते घटनाओं की तिथि क्रम अनुसार वर्णन करने में वह बड़ी लापरवाही बरतते है

किंतु भारतीयों के इतिहास विषय ज्ञान पर पाश्चात्य विद्वानों द्वारा लगाया गया आरोप सत्य से परे है वास्तविकता यह है कि प्राचीन भारतीयों ने इतिहास को उस दृष्टि से नहीं देखा जिससे कि आज के विद्वान देखते उनका दृष्टिकोण पूर्णतया धर्म परक  था उनकी दृष्टि में इतिहास साम्राज्य अथवा सम्राटों के उत्थान व पतन की गाथा न होकर उन समस्त मूल्यों का संकलन मात्र था जिसके ऊपर मानव जीवन आधारित है अत:  उनकी बुद्धि धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों की रचना में अधिक लगी ना की राजनीतिक घटनाओं के अंदर तथापि  इसका अर्थ यह नहीं है कि प्राचीन भारतीयों में ऐतिहासिक चेतना का भी  आभाव था प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन से यह बात स्पष्ट होती है कि यहां के निवासियों में अति प्राचीन काल से ही इतिहास बुद्धि विद्यमान रही वैदिक साहित्य बौद्ध तथा जैन ग्रंथों में अत्यंत सावधानी पूर्वक सुरक्षित आचार्यों की सूची (वंश) से यह बात स्पष्ट हो जाती है ।

वंश के अतिरिक्त गाथा तथा  नाराशंसी  साहित्य जो राजाओ तथा  ऋषियों के स्तुतिपरक  गीत हैं से भी सूचित होता है कि वैदिक युग में इतिहास लेखन की परंपरा विद्यमान थी इसके अतिरिक्त इतिहास तथा पुराण नाम से भी अनेक रचनाएं प्रचलित थी इन्हें  पंचम वेद कहा गया है सातवीं सदी के चीनी यात्री ह्वेनसांग में लिखा है है कि भारत का प्रत्येक प्रांत में घटनाओं का विवरण लिखने के लिए कर्मचारी नियुक्त किए गए थे

कल्याण के विवरण से पता चलता है कि प्राचीन भारतीय विलुप्त तथा विस्मृत इतिहास को पुनर्जीवित करने के कुछ आधुनिक विधियो से भी परिचित थे वह लिखता है कि वही गुणवान कवि प्रशंसा के अधिकारी है जो राग द्वेष से मुक्त होकर

एक मात्र तथ्यों के निरूपण में अपनी भाषा का प्रयोग करता है वह हमें बताता है कि इतिहासका धर्म मात्र ज्ञात घटनाओं में नई घटनाओं को जोड़ना नहीं होता अपितु सच्चा इतिहासकार प्राचीन अभिलेखों  तथा सिक्कों का अध्ययन कर के विलुप्त शास्त्र तथा उनके विजयो की पुन:  खोजकरता है

कल्हण का यह कथन भारतीयों के इतिहास बुद्धि का सबल प्रमाण प्रस्तुत करता है इस प्रकार यदि सावधानीपूर्वक अपने विशाल साहित्य की छानबीन करें तो उसमें हमें इतिहास के पुनर्निर्माणार्थ अनेक महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध होगी साहित्य के ग्रंथों के साथ-साथ भारत में समय समय पर विदेशी पुरातत्ववेत्ताओं ने अतीत के खंडहरों से अनेक ऐसी वस्तु एक खोज निकाली है जो हमें प्राचीन इतिहास संबंधी बहुमूल्य सूचनाएं प्रदान करती है ।

अतः हम सुविधा के लिए प्राचीन इतिहास जाने के साधनों को 3  शीर्षको में रख सकते है

(1)साहित्यिक साक्ष्य

(2)विदेशी यात्रियों के विवरण

(3) पुरातत्व संबंधी साक्ष्य

साहित्यिक साक्ष्य -

इस साक्ष्य के अंतर्गत साहित्यिक ग्रंथों से प्राप्त ऐतिहासिक सामग्रियों का अध्ययन किया जाता है हमारा साहित्य दो प्रकार का है

(1)धार्मिक साहित्य

(2)लौकिक साहित्य

धार्मिक साहित्य - धार्मिक साहित्य में ब्राम्हण तथा ब्रम्हणेत्तर साहित्यों की चर्चा की जाती है

ब्राह्मण ग्रंथों में वेद ,उपनिषद, रामायण ,महाभारत ,पुराण,  स्मृती ग्रंथ आते हैं जबकि

ब्राह्मणेत्तर ग्रंथों में बौद्ध तथा जैन साहित्य से संबंधित रचनाओं का उल्लेख किया जाता है ।

लौकिक साहित्य में ऐतिहासिक ग्रंथ जीवनी , कल्पना प्रधान तथा गल्प साहित्य का वर्णन किया जाता है ।

वेद - वेद भारत की सबसे प्राचीन धर्म ग्रंथ जिनका संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास को माना जाता है भारतीय परंपरा वेदों को नित्य तथा अपौरुषेय मानती हैं वैदिक युग की संस्कृतिक   के ज्ञान का एकमात्र स्रोत होने के कारण वेदों का ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक है प्राचीन काल के अध्ययन के लिए रोचक समस्त सामग्री में प्रचुर रूप में वेदों से उपलब्ध हो जाती है
वेदों की संख्या 4 है
(1)ऋग्वेद
(2)यजुर्वेद
(3)सामवेद
(4)अथर्ववेद

इसमें ऋग्वेद ना केवल भारतीय आर्यों  की अपितु समस्त आर्य जाति की प्राचीनतम रचना है इस प्रकार  भारत तथा भारेततर  प्रदेश के आर्यों के इतिहास ,भाषा धर्म एवं उनकी सामान्य संस्कृति पर प्रकाश डालता विद्वानों के अनुसार आर्यों ने इसकी रचना पंजाब में की थी जब अफगानिस्तान से लेकर गंगा यमुना के प्रदेश तक ही फैले थे।इसमें 10 मंडल तथा 1028 सूक्तियाकि  है पर ऋग्वेद का अधिकांश भाग देव स्त्रोतों से भरा हुआ है और इस प्रकार इसमें ठोस इतिहासिक सामग्री बहुत कम मिलती है परंतु उसके कुछ मंत्र ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख करते हैं जैसे एक स्थान पर 10 राजाओं के युद्ध (दशराज्ञ)  का वर्णन है जो भरत कबीले के राजा सुदास के साथ हुआ था यह ऋग्वेद काल की एकमात्र महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है यह युद्ध आर्यों के दो प्रमुख जनों पुरु तथा भरत के बीच हुआ था भरत कबीले का जन नेता सुदास  था जिनके पुरोहित वशिष्ठ थे उनके विरुद्ध 10 राज्यों का एक संघ था जिसके पुरोहित विश्वामित्र थे  को सुदास ने  रावी नदी के तट पर 10 राजाओं के इस संघ को परास्त किया और इस प्रकार ऋग वैदिक भारत का चक्रवर्ती शासक बन बैठा।

सामवेद ,यजुर्वेद में किसी भी विशिष्ट ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं मिलता साम का शाब्दिक अर्थ होता है गान जिसमें मुख्यता यज्ञ के अवसर पर गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह किसने भारतीय संगीत का मूल  कहा जा सकता है

यजुर्वेद में यज्ञो  के नियमों एवं विधियों के विधानों का संकलन मिलता है जबकि अन्य पद्य में है यह गद्य तथा पद्य दोनों में लिखा गया ऐतिहासिक दृष्टि से अथर्ववेद का महत्त्व इस बात में है कि इसमें सामान्य मनुष्य के विचारों तथा अंधविश्वासों काव्य मिलता है इसमें कुल 731 मंत्र तथा लगभग 6000 पद्य जिनमे कुछ मंत्र ऋग वैदिक मंत्रों से भी प्राचीनतर है ।

पृथ्वीसूक्ति इसका प्रतिनिधि सूक्त माना जाता है इस में मानव जीवन के सभी पक्षो ,  गृहनिर्माण , कृषि की उन्नति , व्यापारिक मार्ग ,  रोग निवारण , समन्वय, विवाह ,प्रणय -गीतों,  राजभक्ति,  राजा का चुनाव ,बहुत सी वनस्पतियो तथा औषधियों आदि का विवरण दिया गया है कुछ मंत्रों में जादू टोने का भी वर्णन है जो इस बात का सूचक है कि इस समय आर्य और अनार्य  संस्कृतियों का समन्वय हो रहा था तथा आर्य ने अनार्यो    के कई  सामाजिक एवं धार्मिक रीति रिवाज एवं विश्वासों को ग्रहण कर लिया था ।

अथर्ववेद में  परीक्षित को कुरुओ का राजा कहा गया था कुरू  देश की समृद्धि का अच्छा चित्रण मिलता है इन चार वेदों को संहिता कहा जाता है।

ब्राम्हण ,आरण्यक तथा उपनिषद-
संहिता के पश्चात ब्राम्हणों, आरण्यको तथा उपनिषदों का स्थान है इनमें उत्तर वैदिक कालीन समाज तथा संस्कृति के विषय में अच्छा ज्ञान प्राप्त होता है ब्राह्मण ग्रंथ वैदिक संहिताओं की व्याख्या करने के लिए गद्य में लिखे गए हैं

प्रत्येक संहिता के लिए अलग-अलग ब्राम्हण ग्रंथ है जैसे
ऋग्वेद के लिए ऐतरेय तथा कौषीतकी ।

यजुर्वेद के लिए तैतिरीय तथा सतपथ

सामवेद के लिए पंचविश

अथर्ववेद के लिए गोपथ
आदि ग्रंथों से हमें परीक्षित के बाद और बिंबसार के पूर्व की घटनाओं का ज्ञान प्राप्त होता है ।
ऐतरेय,  शतपथ, तैतिरीय, पंचविश, आदि प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथों में अनेक ऐतिहासिक तथ्य मिलते हैं ।
ऐतरेय में राज्याभिषेक के नियम तथा कुछ प्राचीन अभिषिक्त राजाओं के नाम दिए गए हैं ।

शतपथ में गन्धार , शल्य , कैकेय, कुरु, पंचाल, कोसल, विदेह, आदि के राजाओं का उल्लेख मिलता है ।
प्राचीन इतिहास के साधन के रुप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है कर्मकांडों के अतिरिक्त इस में सामाजिक विषयों का भी वर्णन है सभी प्रकार आरण्यक तथा उपनिषद में भी कुछ न कुछ  ऐतिहासिक तथ्य प्राप्त होते हैं यद्यपि ये मुख्यता दार्शनिक ग्रंथ हैं ।
जिनका धेय्य ज्ञान की खोज करना है इनमें हम भारतीय चिंतन की चरम परिणति पाते है।

वेदांग तथा सूत्र -

वेदों को भलीभांति समझने के लिये 6 वेदांगों की रचना की गई है - शिक्षा ,ज्योतिष ,कल्प, व्याकरण , निरुक्त , तथा छंद ।

यह वेदो के शुद्ध उच्चारण तथा यज्ञादि में सहायक है इसी प्रकार वैदिक साहित्य को अक्षुण बनाए रखने के लिए सूत्र साहित्य लिखा गया ।
श्रौत, गृह्व, तथा धर्मसूत्रों के अध्ययन से हम यज्ञ विधि विधानों कर्मकांडों तथा राजनीति विधि एवं व्यवहार से संबंधित अनेक बातें ज्ञात करते हैं

ऋग्वेद से लेकर सूत्रों तक के संपूर्ण वैदिक वांग्मय का काल ईसा पूर्व 2000 से लेकर 500 के लगभग  तक माना जाता है

महाकाव्य -

वैदिक साहित्य के बाद भारतीय साहित्य में रामायण और महाभारत नामक दो महाकाव्यों का समय आता है । मूलत: इन ग्रंथों की रचना ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में हुई थी तथा इनका वर्तमान स्वरूप क्रमश:दूसरी एवं चौथी शताब्दी के लगभग निर्मित हुआ भारत के संपूर्ण धार्मिक साहित्य में इन दोनों महाकाव्यों का अत्यंत आदरणीय स्थान हैं ।
इनके अध्ययन में प्राचीन हिंदू संस्कृति के विविध पक्षों का सुंदर ज्ञान प्राप्त होता है इन महाकाव्य द्वारा प्रतिपादित आदर्श तथा मूल्य सार्वभौम मान्यता रखते हैं रामायण हमारा आदि- काव्य  है जिसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी।

इससे हमें हिंदुओं तथा यवनों और सको के  संघर्ष का विवरण प्राप्त होता है। इसमें यवनों का  देश तथा सको का नगर , कुरु  तथा मद्र देश और हिमालय के बीच स्थित बताया गया है ।इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उन दिनों यूनानी तथा सीथियन  लोग पंजाब के कुछ भागों में बसे हुए थे ।

महाभारत की रचना वेदव्यास ने की थी इसमें भी शक यवन पारसिक हूण आदि जातियों का उल्लेख मिलता है इससे प्राचीन भारतवर्ष की सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक दशा का परिचय मिलता है ।

राजनीति तथा शासन के विषय में यह ग्रंथ बहुमूल्य सामग्रियों का भंडार  है । महाभारत में यह कहा गया है कि धर्म अर्थ काम तथा मोक्ष के विषय में जो कुछ भी इसमें है वह अन्यत्र कहीं नहीं है।

परंतु ऐतिहासिक दृष्टि से इस ग्रंथ का विशेष महत्व नहीं है क्योंकि इस में वर्णित कथा वह में कल्पना का मिश्रण अधिक है महाकाव्यों में जिस समाज और संस्कृति का चित्रण है उनका उपयोग उत्तर वैदिक काल के अध्ययन के लिए उपयोगी माना जा सकता है

पुराण -

भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध विवरण पुराणों में मिलता है ।पुराणों के रचयिता लोमहर्षक व उनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं। इनकी संख्या 18 है अधिकांश पुराणों की रचना तीसरी चौथी शताब्दी ईस्वी में की गई थी।

अमरकोश में पुराणों के पांच विषय बताए गए -

(1) सर्ग अर्थात जगत की सृष्टि

(2) प्रतिसर्ग अर्थात प्रलय के बाद जगत की पुनः सृष्टि

(3) वंश अर्थात ऋषियों तथा देवताओं की वंशावली

(4)  मन्वंतर अर्थात महायुग

(5) वंशानुचरित्र अर्थात प्राचीन राजकुलो  का इतिहास

इनमें ऐतिहासिक दृष्टि से वंशानुचरित का विशेष महत्व है 18 पुराणों में केवल 5 में (मत्स्य, वायु , विष्णु, ब्राह्मण एवं भागवत ) ही राजाओं की वंशावली पाई जाती है ।
जिसमें मत्स्यपुराण सबसे अधिक प्राचीन एवं प्रमाणित है पुराणों में भविष्य शैली में कलयुग के राजाओं की तालिका दी गई है ।
उनके साथ शैशुनाग ,नंद ,मौर्य , शुंग ,कण्ड, आंध्र (सातवाहन)तथा गुप्त वंश की वंशावली भी मिलती है।

मौर्य वंश के लिए विष्णु पुराण तथा सातवाहन वंश के लिए मत्स्यपुराण महत्वपूर्ण है इसी प्रकार वायु पुराण में गुप्त वंश के साम्राज्य की सीमा का वर्णन तथा गुप्तो  के शासन पद्धति का भी कुछ विवरण प्राप्त होता है।

सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अग्नि पुराण का काफी महत्व जिसमें राजतंत्र के साथ-साथ कृषि संबंधी विवरण भी दिया गया है इस प्रकार पुराण प्राचीन काल से लेकर गुप्त काल के इतिहास से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं का परिचय कराते हैं ।छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व से पहले के प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए तो पुराण ही एकमात्र स्रोत है।

धर्मशास्त्र -

धर्मसूत्र ,स्मृति , भाष्य ,  निबंध आदि को सम्मिलित  रुप से धर्म शास्त्र कहा जाता है ।
धर्मसूत्रों का काल समानता इसवी पूर्व 500 से 200 के लगभग निर्धारित किया जाता है ।आपस्तम्भ ,  बौधायन तथा गौतम के धर्मसूत्र सबसे प्राचीन हैं। धर्मसूत्रों में ही सर्वप्रथम हम वर्ण व्यवस्था का स्पष्ट वर्णन प्राप्त करते हैं तथा चार वर्णों को अलग-अलग कर्तव्यो का  निर्देश मिलता है कालांतर में धर्मसूत्रों का स्थान स्मृतियों में ग्रहण किया जहां धर्मसूत्र का गद्य में है वही स्मृति ग्रन्थ पद्य में में लिखे गए हैं ।
स्मृतियों में मनुस्मृति सबसे प्राचीन तथा प्रमाणित मानी जाती है जिसकी रचना की दूसरी शताब्दी पूर्व  से दूसरी शताब्दी के मध्य हुआ माना जाता है।

प्रमुख स्मृतियाँ -

(1) याज्ञव्ल्क्य
(2) नारद
(3) वृहस्पति
(4) कात्यायन
(5) देवल

मनुस्मृति को सुंग काल का ग्रन्थ माना जाता है
नारद स्मृति गुप्त वंश की जानकारी मिलती है।

ब्राम्हणेतर साहित्य -

ब्राम्हणेतर  साहित्य में बौद्ध ग्रन्थ  तथा जैन ग्रन्थ महत्वपूर्ण है

बौद्ध ग्रंथ में त्रिपिटक सबसे महत्वपूर्ण है बुद्ध की मृत्यु के  पश्चात उनकी शिक्षाओं का संकलन कर तीन भागों में बांटा गया इन्हीं को त्रिपिटक कहते हैं

विनयपिटक( संघ सम्बन्धी नियम तथा आचार  की शिक्षाएं )
सुत्तपिटक (धार्मिक सिद्धांत तथा धर्मोपदेश)

अभिधम्मपिटक (दार्शनिक सिद्धांत) इसके अतिरिक्त निकाय तथा जातक आदि से भी हमें अनेकानेक ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध होती है पाली भाषा में लिखे गए बौद्ध ग्रंथों को प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व का माना जाता है

अभिधम्मपिटक में सर्वप्रथम संस्कृत भाषा का प्रयोग मिलता है त्रिपिटक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बौद्ध संघ के संगठन का पूर्ण  विवरण प्रस्तुत करता  हैं निकायों में बौद्ध धर्म के सिद्धांत तथा कहानियों का संग्रह है जातकों में बुद्ध के पूर्व जन्म की कहानी है।

जैन ग्रन्थ -

जैन साहित्य को आगम (सिद्धांत) कहा जाता है ।जैन साहित्य का दृष्टिकोण भी बौद्ध साहित्य के ही समान धर्मपरक है ।
  जैन ग्रंथों में परिशिष्टपर्वन ,भद्रबाहुचरित ,आवश्यक सूत्र , आचारांगसूत्र , भगवतीसूत्र , कालिकापुराण, आदि विशेष रुप से उल्लेखनीय है। इनमें अनेक ऐतिहासिक घटनाओं की सूचना मिलती है जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास कल्पसूत्र (लगभग चौथी शती ईसवी पूर्व )से ज्ञात होता है उसकी रचना भद्रबाहु ने की थी।
परिशिष्टपर्वन तथा भद्रबाहुचरित  से चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन के प्रारंभिक तथा उत्तर कालीन घटनाओं की सूचना मिलती है भगवतीसूत्र में महावीर के जीवन मृत्यु तथा अन्य समकालिक के साथ उनके संबंधों का बड़ा रोचक विवरण मिलता है ।
आचारांगसूत्र जैन भिक्षुओ के आचार- नियमों का वर्णन करता है ।
जैन साहित्य में पुराणों का भी महत्वपूर्ण स्थान है जिन्हे चरित कहा जाता है ।यह प्राकृत संस्कृत अपभ्रंश तीनों भाषाओं में लिखे गए हैं ।

इसमें पदमपुराण ,हरिवंशपुराण ,आदिपुराण उल्लेखनीय है । जैन  पुराणों का समय छठी शताब्दी से सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी तक निर्धारित किया गया है इसमें मुख्यता कथाएं दी गई है तथापि इसके अध्ययन से  विभिन्न कालो की राजनीतिक सामाजिक एवं धार्मिक दशा का थोड़ा बहुत ज्ञान प्राप्त होता है

लौकिक साहित्य - लौकिक साहित्य के अंतर्गत ऐतिहासिक एवं अर्धऐतिहासिक ग्रंथों तथा जीवनियो का  विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है।


ऐतिहासिक रचनाओं में -


कौटिल्य का अर्थशास्त्र - कौटिल्य का अर्थशास्त्र  मौर्यकालीन इतिहास एवं राजनीति के लिए महत्वपूर्ण ग्रंथ है इसमें चंद्रगुप्त मौर्य के शासन व्यवस्था पर  प्रकाश डाला गया है 


कलहण की राजतरंगिणी -इसमें आदिकाल से लेकर 1151 ईसवी तक के कश्मीर के सभी शासकों के काल के घटनाओं का क्रमानुसार विवरण दिया गया है।


सोमेश्वर कृत रसमाला तथा कीर्ति कौमुदी -


मेरुतुंग कृत प्रबंधचिंतामणि 


राजशेखर कृति प्रबंधकोश 

आदि से  गुजरात के चालुक्य वंश का इतिहास तथा उस समय की संस्कृति का अच्छा ज्ञान प्राप्त होता है।


चचनामा नामक ग्रंथ में अरबो के सिंध विजय का वृतांत प्राप्त होता है यह अरबी भाषा में लिखा गया है बाद में खुफी  द्वारा इसका अनुवाद फारसी में किया गया।


अर्ध एतिहासिक रचनाओ में - 


पाणिनि  की अष्टाध्यायी तथा कात्यायन की वर्तिकी जैसे  व्याकरण ग्रंथों में मौर्य से पहले एवं मौर्य राजनीतिक व्यवस्था का विवरण मिलता है 


गार्गी संहिता ज्योतिष ग्रंथ है तथापि  कुछ ऐतिहासिक घटनाओं की सूचना भी मिलती है इसमें भारत पर यवन आक्रमण का विवरण प्राप्त होता है ।


पतंजलि का महाभाष्य -

पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे जिन्होंने अपनी पुस्तक महाभाष्य में शुंगो के इतिहास का  वर्णन किया है 


विशाखदत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस से मौर्यकालीन तथा 


मालविकाग्निमित्र से शुंग  काल की राजनीतिक परिस्थितियों का विवरण मिलता है


एतिहासिक जीवनियाँ -


अश्वघोष कृत बुद्धचरित में गौतम बुद्ध के चरित्र का वर्णन हुआ है ।


बाणभट्ट कृत हर्षचरित से हर्षवर्धन के जीवन की तथा  तत्कालीन समाज व्  धर्म विषयक अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं इसमें यशोवर्मन के गौड़ नरेश के ऊपर किए गए आक्रमण तथा उसके वध का वर्णन है ।


विल्हण के विक्र्मांकचरित  में कल्याणी के चालुक्य वंशी नरेश विक्रमादित्य षष्ठ  के चरित्र का  वर्णन है।


पद्यगुप्त के नवसहसांकचरित में धारा नरेश मुञ्ज  तथा उनके भाई सिन्धुराज  के जीवन की घटनाओं का वर्णन मिलता है।


संध्याकर नन्दी कृत रामचरित में बंगाल के पाल वंश के  शासन धर्म एवं तत्कालीन समाज व्यवस्थाओ  का ज्ञान प्राप्त होता है ।


हेमचंद्र कृत कुमारपालचरित में चालुक्य शासकों जयसिंह सिद्धराज तथा कुमार पाल का जीवन चरित्र तथा उनके समय के राज व्यवस्था का  वर्णन मिलता है।


जयानक कृत पृथ्वीराजविजय से चौहान राजवंश के इतिहास का ज्ञान प्राप्त होता है


विदेशी यात्रियों का विवरण -


भारतीय साहित्य में समय समय पर भारत आने वाले विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण से भी इतिहास की पर्याप्त  जानकारी मिलती है ।


उनमें से कुछ ने भारत में कुछ  समय तक निवास किया एवं अपने अनुभव से लिखा ।


इसमें यूनानी, चीनी तथा अरबी -फारसी लेखक विशेष रुप से उल्लेखनीय है ।


यूनानी लेखक - यूनानी लेखको में टेटीयस व् हेरोडोटस का नाम प्रसिद्ध है ।

टेटीयस एक ईरानी बैद्य था उसे ईरानी अधिकारियों द्वारा भारत की जानकारी प्राप्त हुई किंतु उसका विवरण अधिक विश्वसनीय नहीं है।


हेरोडोटस को इतिहास का जनक कहा जाता है उसने अपनी पुस्तक की स्टोरीका में पांचवी सातवी ईसा पूर्व के  भारत एवं फारस सम्बन्ध का उल्लेख किया है उसका विवरण अधिकांश अनुसूचियों एवं अफवाहों पर आधारित है ।


सिकंदर के साथ आने वाले लेखक -


(1)नियार्कस

(2) आनेसीकिटिस

(3) आस्तियोबुल 


आदि की रचनाये अधिक विश्वसनीय है।


सिकंदर के पश्चात के लेखक -


(1) मेगस्थनीज

(2) डाइमेकस 

(3) डायोनिसियस 


मेगस्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया वह सेल्यूकस का राजदूत था उसने अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्य  युगीन संस्कृतियों एवं समाज के विषय में लिखा है ।


डाईमेकस बिंदुसार के दरबार में आया था वह सीथियन नरेश एंटीओक्स का राजदूत था।


डायोनिसियस टालमी का राजदूत था वह अशोक के दरबार में आया था।


इसके अतिरिक्त टालमी का भूगोल, प्लिनी का नेचुरल हिस्ट्री, पेरीप्लस ऑफ़ द इरिथ्रयन सी ,आदि से इतिहास जानने में काफी मदद मिलती है ।


चीनी लेखक -भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण में चीनी यात्रियों के विवरण विशेष उपयोगी है यह चीनी बौद्ध अनुआयी थे वह भारत में बौद्ध तीर्थ स्थानों एवं बौद्ध धर्म के विषय में जानकारी करने आए थे।

इनमे 4 प्रमुख है।


(1) फहियान

(2) सुंगयुन

(3) ह्वेनसांग

(4)इतिसिंग


फहियान गुप्त नरेश चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के दरबार में आया उसने अपने विवरण में मध्य देश के समाज एवं संस्कृति का वर्णन किया है ।


सुंगयुन 518 ई. में भारत में आया और उसने अपनी 3 वर्ष के यात्रा के दौरान बौद्ध ग्रंथों की प्रतियां ही एकत्रित की।


ह्वेनसांग हर्षवर्धन के शासनकाल में यहां आया उसने 16 वर्षों तक यंहा निवास किया तथा 6 वर्षो तक नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की ।


उसका भ्रमण वृत्तांत सी- यु- की के नाम से प्रसिद्ध है जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है इसमें हर्ष कालीन भारत के समाज ,धर्म  , तथा राजनीति  पर सुंदर प्रकाश डाला है ।


इत्सिंग 7वीं शताब्दी के अंत में भारत आया था उसने अपने विवरण में नालंदा व् विक्रमशिला विश्वविद्यालय का तथा अपने समय के भारतीय दशा का वर्णन किया है ।


इसके अतिरिक्त मात्वालिन , व् चाऊ-ज़ू-कुआ  का भी उल्लेख किया जा सकता है मात्वालिन  के विवरण से हमें हर्ष वर्धन के पूर्वी अभियान के विषय में जानकारी मिलती है ।


अरबी लेखक अरबी लेखक में अलबरूनी के नाम प्रमुख है उसने अपनी पुस्तक तहकीक ए हिंद (भारत की खोज )में यहां के निवासियों का वर्णन किया है उसने राजपूत कालीन समाज ,धर्म ,रीतिरिवाज तथा राजनीति पर प्रकाश डाला है ।

अलबरूनी के अतिरिक्त अल विलादूरी , सुलेमान ,अल- मसूदी ,हशन निजाम , फरिश्ता ,निजामुद्दीन आज मुसलमान लेखक हैं उनकी कृतियां भारतीय इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देती है


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