Tuesday, September 19, 2017

अशोक महान

बिंदुसार का उत्तराधिकारी अशोक महान हुआ जो 269 ईसापूर्व में मगध की राज गद्दी पर बैठा ।

राज गद्दी पर बैठने से समय अशोक अवन्ति का राज्यपाल था। मास्की एवं गुर्जरा अभिलेख में अशोक का नाम अशोक मिलता है ।

पुराणों में अशोक को अशोकवर्धन कहा गया है। अशोक ने अपने अभिषेक के 8 वें वर्ष लगभग 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर आक्रमण किया कलिंग की राजधानी तोसली पर अधिकार कर लिया।

प्लिनी  का कथन है कि मिस्र का राजा फिलाडेल्फस ने पाटिलपुत्र में डियानिसियस नामक राजदूत अशोक के दरबार में भेजा।

उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु में अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी ।
अशोक ने  अजीवको को रहने हेतु बराबर की पहाड़ियों में चार गुफाओं का निर्माण कराया।
जिसका नाम कर्ज चौपाल सुदामा तथा विश्व झोपड़ी था।

अशोक के पौत्र दशरथ में अजीबको को नागार्जुन गुफा प्रदान की थी ।अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी था अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंद्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा।

भारत में शिलालेख का प्रचलन सर्वप्रथम अशोक ने किया अशोक के शिलालेख में ब्राम्ही खरोष्ठी ग्रीक अरमाइक लिपि का प्रयोग हुआ है ।

ग्रीक एवं अरमाइक लिपि के  अभिलेख अफगानिस्तान से ,
खरोष्ठी लिपि का अभिलेख उत्तर पश्चिम पाकिस्तान से ,

शेष भारत में ब्राम्ही  के अभिलेख मिले हैं ।
अशोक के अभिलेखों को तीन भागों में बांटा जा सकता है ।
(1) शिलालेख
(2)स्तंभलेख
(3)गुहालेख

अशोक के शिलालेख की खोज 1750 में पाद्रेटी फेंथलर  ने की थी जिनकी संख्या 14 है ।
अशोक के अभिलेख पढ़ने में सफलता 1935 में जेम्स प्रिंसेप को मिली।

अशोक के प्रमुख शिलालेख एवं उस में वर्णित विषय

प्रथम शिलालेख -इस में पशुबलि की निंदा की गई है।

दूसरा शिलालेख इसमें अशोक ने मनुष्य एवं पशु दोनों की चिकित्सा की व्यवस्था का उल्लेख किया है।

तीसरा अभिलेख इसमें राजकीय अधिकारियों को यह आदेश दिया गया है कि वह हर 5 वे वर्ष के उपरांत दौरे पर जाएं इस शिलालेख में कुछ धार्मिक नियमों का भी उल्लेख किया गया है ।

चौथा शिलालेख इस अभिलेख में भेरी घोष की जगह धम्म घोष की घोषणा की गई है ।

पांचवा शिलालेख इस शिलालेख में धर्म महा्मात्रो की नियुक्ति के विषय में जानकारी मिलती है ।

छठा अभिलेख इसमें आत्म नियंत्रण की शिक्षा दी गई।

सातवां एवं 8 वा शिलालेख इसमें अशोक की तीर्थयात्राओं का उल्लेख है ।

9 वा शिलालेख इसमें सच्ची भेंट सत्य सदाचार का उल्लेख है ।

10 वा शिलालेख इस में अशोक ने आदेश दिया है कि राजा तथा उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित में सोचे।

11 वां शिलालेख इसमें धम्म की व्याख्या की गई है।

12 वां शिलालेख इसमें स्त्री महामात्रों की नियुक्ति एवं सभी प्रकार के विचारों के सम्मान की बात की गई है।

13 शिलालेख जिसमें कलिंग युद्ध का वर्णन एवं अशोक के हृदय परिवर्तन की बात कही गई है इसी में पड़ोसी राजाओं का वर्णन है ।

14 वा शिलालेख अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिए प्रेरित किया।

अशोक के स्तंभ लेखों की संख्या 7 है जो केवल ब्राम्ही लिपि  में लिखी गई है ।यह 6  अलग-अलग स्थानों से प्राप्त हुई है ।

(1) प्रयाग स्तंभ लेख यह पहले कौशांबी में स्थित था इस स्तंभलेख को अकबर ने इलाहाबाद के किले में स्थापित कर आया।

(2) दिल्ली टोपरा यह स्तम्भ लेख फिरोजशाह तुगलक द्वारा टोपरा से दिल्ली लाया गया ।

(3)दिल्ली-मेरठ यह पहले मेरठ में स्थिति था यह स्तम्भ लेख फिरोजशाह  द्वारा दिल्ली लाया गया ।

(4) रामपुरवा यह स्तम्भ लेख चंपारण बिहार में स्थापित है इसकी खोज 1872  कारलायल ने की।

(5) लोरिया अरेराज - चंपारण बिहार में।

(6)  लौरिया नंदनगढ़ चंपारण बिहार में इस स्तम्भ पर मोर का चित्र बना है ।

कौशांबी अभिलेख को रानी का अभिलेख कहा जाता है ।
अशोक का सबसे छोटा स्तम्भ लेख रुम्मिदेई  है इसी में लुम्बनी में धाम यात्रा के दौरान अशोक द्वारा भू राजस्व की दर घटा देने की घोषणा की गई है ।

अशोक का सातवां अभिलेख सबसे लंबा है।

प्रथम पृथक शिलालेख में घोषणा की है कि सभी मनुष्य मेरे बच्चे हैं ।

अशोक का शार-ए-कुना (कन्दहार)अभिलेख ग्रीक एवं अरमाइक भाषाओं में प्राप्त हुआ है ।

साम्राज्य में मुख्यमंत्री और पुरोहित की नियुक्ति के पूर्व उनके चरित्र को काफी जाचा परखा जाता था । जिसे उपधा परीक्षण कहा जाता था ।सम्राट की सहायता के लिए मंत्रिपरिषद होती थी जिसमें सदस्यों की संख्या 12 16 या 20 हुआ करती थी ।

अर्थशास्त्र में शीर्ष अधिकारियों के रूप में तीर्थ का उल्लेख मिलता है जिसे महा्मात्र कहा जाता था । इसकी संख्या 18 थी।

अर्थशास्त्र में चर  जासूस को कहा गया है । अशोक के समय मौर्य साम्राज्य के प्रांतों की संख्या 5 थी प्रान्तों  को  चक्र कहा जाता था ।

प्रान्तों के प्रशासक कुमार या आर्यपुत्र या  राष्ट्रिक कहलाते थे। प्रांतों का विभाजन विषय में किया गया था जो विषयपति के अधीन होते थे प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम  थी जिसका मुख्य ग्रामीणी  कहलाता था

प्रशासको में सबसे छोटा गोप था जो 10 ग्राम के शासन को संभालता था ।
मेगास्थनीज के अनुसार नगर प्रशासन की 30 सदस्यों का एक मंडल करता था 6 समितियों में विभाजित था प्रतेयेक समिति में 5 सदस्य होते थे ।

विक्रीकर के रूप में मूल्य का दसवां भाग वसूला जाता था इससे बचने वाले को मृत्युदंड दिया जाता था।

मेगास्थनीज के अनुसार एग्रोनोमाई मार्ग निर्माण अधिकारी था।

मौर्य प्रांत एवं उनकी राजधानिया

(1) उत्तरापथ  -            तक्षशिला

(2) अवन्ति राष्ट्री -        उज्जैनी

(4) कलिंग       -          तोसली

(5) दक्षिणापथ    -   स्वर्णगिरि

(6) प्राशी -       पाटिलपुत्र

अर्थशास्त्र में वर्णित तीर्थ

(1) मंत्री      -      प्रधानमंत्री

(2) पुरोहित   -     धर्म एवं दान विभाग का प्रधान

(3) सेनापति   -    सैन्य विभाग का प्रधान

(4) युवराज    -    राजपुत्र

(5) दौवारिक   -   राजकीय द्वार रक्षक

(6) अंतर्वेदिक् -    अन्त:पुर का अध्यक्ष

(7) समाहर्ता   -    आय का संग्रह कर्ता

(8) सन्निधाता -    राजकीय कोष का अध्यक्ष

(9) प्रशास्ता   -      कारगार का अध्यक्ष

(10) प्रेदेष्ट्री -         कमिशनर

(11) पौर      -      नगर का कोतवाल

(12) व्यवहारिक -    प्रमुख न्यायाधीश

(13) नायक      -    नगर रक्षा का अध्यक्ष

(14) कर्मान्तिक  -    उद्योगों एवं कारखानों का अध्यक्ष

(15) मन्त्री परिषद -     अध्यक्ष

(16) दण्डपाल     -      सेना का समान एकत्र करने वाला।

(17) दुर्गपाल  -        दुर्ग रक्षक

(18) अंतपाल -       सीमावर्ती दुर्गो का रक्षक

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