Monday, September 18, 2017

सिन्धु सभ्यता

रेडियो कार्बन 14 जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति के द्वारा सिंधु सभ्यता की सर्वमान्य तिथि 2350 ईसा पूर्व से 1750 इसवी पूर्व मानी गई है। सिंधु सभ्यता की खोज रायबहादुर दयाराम साहनी ने की थी ।सिंधु सभ्यता को प्रागैतिहासिक अथवा कांस्य युग में रखा जा सकता है   । इस सभ्यता के  मुख्य निवासी द्रविण  एवं भूमध्यसागरीय थे ।

सिंधु सभ्यता के सार्वधिक पश्चिम पुरास्थल सुत्कागेंडोर (बलूचिस्तान) पूर्वी पुरास्थल आलमगीरपुर( जिला मेरठ उत्तर प्रदेश ) उत्तरीपुरा स्थल मांदा जिला (अखनूर जम्मू कश्मीर )तथा दक्षिणी पुरास्थल दायमाबाद (जिला अहमदनगर महाराष्ट्र )।

सिंधु सभ्यता या सेंधव सभ्यता नगरीय सभ्यता थी सिंधु सभ्यता से प्राप्त परिपक्व अवस्था वाले स्थलों में केवल 6 को बडे नगर की संज्ञा दी गई है यह है-

(1) मोहनजोदड़ो 
(2) हड़प्पा 
(3) गणवारीवाला
(4) धौलवीरा 
(5) राखीगढ़ी 
(6) कालीबंगन

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हड़प्पा संस्कृति के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए हैं ।

लोथल एवं सुत्कागेंडोर सिंधु सभ्यता का बंदरगाह था।

जुते हुए खेत और नक्काशीदार इंट का प्रयोग का साक्ष्य कालीबंगा से प्राप्त हुआ है ।

मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्नागार सैन्धव सभ्यता की सबसे बड़ी इमारत है ।

मोहनजोदड़ो से प्राप्त वृहत स्नानागार एक प्रमुख स्मारक है इसके मध्य स्नान कुंड 11.88 मीटर लंबा 7.0 1 मीटर चौड़ा एवं 2.43 मीटर गहरा है ।

अग्निकुंड लोथल एवं कालीबंगन से प्राप्त हुए हैं।

मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक शील पर तीन मुख वाले देवता पशुपतिनाथ की मूर्ति मिली है इसके चारों ओर हाथी ,गेंडा ,चीता एवं भैसा विराजमान हैं ।

मोहनजोदड़ो से नृत्यकी की एक कांस्य मूर्ति मिली है।

हड़प्पा की मोहरों पर सबसे अधिक एक श्रृंगी पशु का अंकन मिला है ।
मनके बनाने के कारखाने लोथल एवं चंदौली चन्हूदड़ो में मिले हैं ।
सिंधु सभ्यता की लिपि भाव चित्रात्मक है यह लिपि दाई से बाई ओर लिखी जाती थी अभिलेख 1 से अधिक पंक्तियों में होता था तो पहली पंक्ति दाई ओर से बाई ओर दूसरी बाई से दाई ओर को लिखी जाती थी।

सिंधु सभ्यता के लोगों ने नगरो तथा घरों के विन्यास के लिए ग्रीड पद्धति अपनाई घर के दरवाजे और खिड़की सड़क की ओर ना खुल कर पिछवाड़े की ओर खुलते थे केवल लोथल नगर में घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर खुले थे ।

सिंधु सभ्यता की मुख्य फसल गेहूं और जौ  सेंधव वासी मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे ।

रंगपुर एवं लोथल से चावल के दाने मिले हैं जिनसे धान की खेती होने का प्रमाण मिलता है चावल का प्रथम साक्ष्य लोथल से ही प्राप्त हुए हैं ।

सुरकोटदा कालीबंगन एवं लोथल के सैन्धव कालीन घोड़े के अस्थि पंजर मिले हैं।

तौल की इकाई संभवता 16 के अनुपात में थी सैन्धव सभ्यता के लोग यातायात के लिए दो पहियों एवं चार पहियों वाली बैलगाड़ी या भैसा गाडियों का उपयोग करते थे ।

मेसोपोटामिया के अभिलेख में वर्णित मेलुहा शब्द का अभिप्रयाय सैन्धव  सभ्यता से ही है ।

संभवता हड़प्पा संस्कृति प्रशासन वणिक वर्ग के हाथों में था ।पिग्गट में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुडवा राजधानी कहा है।

सिंधु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मान कर उस की पूजा किया करते थे ।

वृक्ष पूजा एवं शिव पूजा का प्रचलन के साक्ष्य सिंधु सभ्यता में मिलते हैं ।
स्वास्तिक चिन्ह संभवता हड़प्पा सभ्यता की देन है इस चिन्ह से सूर्य उपासना का अनुमान लगाया जाता है।

सिंधु घाटी के नगरों में किसी भी मंदिर के अवशेष नहीं मिले हैं सिंधु सभ्यता में मातृ देवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी ।

पशुओ में कुबड वाला सांड इस सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूजनीय था ।
स्त्री मृन्मुर्तियाँ  ( मिट्टी की मूर्तियां )अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सैन्धव समाज मातृसत्तात्मक था ।

सैन्धव वासी सूती एवं ऊनी वस्त्रो का प्रयोग करते थे।

मनोरंजन के लिए सैन्धव वासी मछली पकड़ना, शिकार करना ,पशु पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़ ,पासा ,खेलना आदि प्रमुख था ।

सिंधु सभ्यता के लोग काले रंग के डिजाइन किए हुए लाल मिट्टी के बर्तन बनाते थे ।

सिंधु घाटी के लोग तलवार से परिचित नहीं थे।

कालीबंगन एकमात्र हड़प्पाकालीन स्थल था जिसका निचला शहर (सामान्य लोगों को ही रहने हेतु )भी किले से घिरा हुआ था।

प्रदा प्रथा एवं वेश्यावृत्ति सेंधव सभ्यता में प्रचलित थी

शव को जलाने एवं गाड़ने यानी दोनों प्रथाएं प्रचलित थी हड़प्पा में शव को दफनाने जबकि मोहनजोदड़ो में जलाने की प्रथा विद्यमान थी ।

लोथल एवं कालीबंगा के युग्म समाधियां मिली हैं ।

सेंधव सभ्यता के विनाश का संभवत सबसे प्रभावी कारण बाढ़ था।
आग  में पकी  मिट्टी को तेरा कोटा कहा जाता है।

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