Monday, September 18, 2017

शैव धर्म

भगवान शिव की पूजा करने वाले को शैव तथा शिव से संबंधित धर्म को शैव धर्म कहा गया।
शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है ।
ऋग्वेद में शिव के लिए रूद्र नामक देवता का उल्लेख है ।

अथर्ववेद में शिव को भव , शर्व , पशुपति एवं भूपति कहा गया है ।लिंग पूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्य पुराण में मिलता है । महाभारत के अनुशासन पर्व में भी लिंग पूजा का वर्णन है ।

वामन पुराण में शैव सम्प्रदाय की संख्या 4 बताई गई है यह है -
(1) पशुपति 
(2) कापालिक 
(3) कालामुख 
(4) लिंगायत

पशुपति संप्रदाय शैव का सर्वाधिक प्राचीन संप्रदाय है। इसके संस्थापक लकुलीश हैं जिन्हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है ।पशुपति संप्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया है । 
इस मत का प्रमुख सिद्धांत ग्रंथ पाशुपत सूत्र है ।श्रीधर पंडित एक विख्यात पाशुपत आचार्य थे ।

कापालिक संप्रदाय के ईष्टदेव भैरव थे । इस संप्रदाय का प्रमुख केंद्र श्रीशैल नामक स्थान था ।

कलामुख संप्रदाय के अनुयायी को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा गया है । इस संप्रदाय के लोग नर कपाल में ही भोजन जल तथा सुरापान करते हैं । साथ ही अपने शरीर पर चिता की भस्म लगते हैं ।

लिंगायत संप्रदाय दक्षिण में प्रचलित था इन्हें  जंगम भी कहा जाता था इस संप्रदाय के लोग शिवलिंग की उपासना करते थे ।

बसव पुराण में लिंगायत संप्रदाय के प्रवर्तक अल्लभ प्रभु तथा उनके शिष्य बासव को बताया गया है इस संप्रदाय को वीर शिव संप्रदाय भी कहा जाता है ।

10 वीं शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ में नाथ संप्रदाय की स्थापना की। इस संप्रदाय का व्यापक प्रचार-प्रसार बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ।  दक्षिण भारत में शैवधर्म चालुक्य राष्ट्रकूट पल्लव एवं चोलों के समय लोकप्रिय रहा ।

पल्लव काल में शिव धर्म का प्रचार प्रसार नायनारो द्वारा किया गया नयनार संतों की संख्या 63 बताई गई है । जिसमें अप्पार, तिरुज्ञान , सम्बन्दर  एवं सुंदर मूर्ति आदि के नाम उल्लेखनीय है ।

एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने कराया । चोल शासक राजराज प्रथम ने तंजौर में प्रसिद्ध राजराजेश्वर मंदिर का निर्माण कराया । इसे बृहदेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है । कुषाण शासको  की मुद्रा पर शिव एवं नंदी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है।

सम्प्रदाय एवं उसके संस्थापक

आजीवक                        मक्खलिपुत्र गोशाल

घोर अक्रियावादी               पूरण कश्यप

यदृच्छवाद                       आचर्य अजित

भौतिकवाद                     पकुध कच्चायन

अनिश्चयवादी                   संजय वेट्ठलिपुत्र

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