किसी भी व्यवस्थित अध्ययन के लिए एक सुनिश्चित शब्दावली अनिवार्य आवश्यकता होती है अतः पुराविदो प्रागैतिहासिक काल के विभाजन के लिए अनेक शब्दावलियों को प्रस्तुत किया ।
1773 इसवी में पी. एफ. शूम ने डेनमार्क के प्रागैतिहासिक संस्कृति चरणों को तीन कालों में विभक्त किया।
(1) पाषाण काल
(2) कास्य काल
(3)लौह काल
1836 ई स्वी में तामसेन इसी का अनुकरण किया । फ्रांसीसी विद्वान सर जान लुब्बक जो बाद में लार्ड एवेवरी के नाम से जाने गए ने पाषाण काल का विभाजन पूर्व पाषाण , नव पाषाण में किया जो उपकरणों के प्रारूप एवं तकनीकी के आधार पर किया गया था ।
कुछ समय बाद का अनुभव किया गया कि नवपाषाण मनुष्य की सांस्कृतिक इतिहास की अपेक्षाकृत नूतन भूत काल का प्रतिनिधित्व करता है। इस कारण पूर्व पाषाण काल की विस्तृत अवधि के पुनर विभाजन की आवश्यकता प्रतीत हुई अतः लार्तेत में 1870 के दशक में इसका विभाजन प्रारंभिक पूर्व पाषाण, मध्य पूर्व पाषाण एवं उच्च पूर्व पाषाण इन 3 कालों में किया ।
यह विभाजन विभिन्न पाषाण उद्योगों के अनुसार चलने वाले प्राणी समूह के परिवर्तन को दृष्टि में रखकर किया गया था ।1961 ईस्वी में प्रथम एशियाटिक पुरातत्व सम्मेलन दिल्ली में आयोजित किया गया जिसमें यह मत दिया गया कि चुकी भारत और अफ्रीका के पाषाण काल में अधिक निकटता है अत: वही की शब्दावली मानते हुए भारत के लिए पूर्व मध्य एवं उत्तर पाषाण काल शब्दावली का प्रयोग किया जाने का सुझाव सामने आया ।इसके पीछे मुख्य तर्क यह था कि भारत में उच्च पुरापाषाण कालीन संस्कृति की सामग्री नहीं मिलती।
क्योंकि भारत के विभिन्न भागों में अब उच्च पुरापाषाण संस्कृति के साक्ष्य प्रकाश में आ चुके हैं अतः भारतीय पाषाणकालीन संस्कृति का नामकरण भी यूरोप के अनुसार ही किया जा सकता है जो निम्न वत हैं -
(1) पूरा पाषाण काल
(2) मध्य पाषाण काल
(3) नवपाषाण काल
पुरापाषाण काल को उपकरणों में विभिन्नता के आधार पर तीन कालों में विभाजित किया जाता है
(1) निम्न पूर्व पाषाण काल
(2) मध्य पूर्व पाषाण काल
(3) उच्च पूर्व पाषाण काल
निम्न पूर्व पाषाण काल भारत के विभिन्न भागों में निम्न पूर्व पाषाण काल से संबंधित उपकरण प्राप्त होते हैं उन्हें दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है
(1)चॉपर चॉपिंग पेबुल संस्कृति इसके उपकरण सर्वप्रथम पंजाब की सोहन नदी घाटी से प्राप्त हुए इसी कारण इसे सोहन संस्कृति भी कहा गया है पत्थर के टुकड़े जिनके किनारे पानी के बहाव के रगड़ खाकर चिकनी और सपाट हो जाते हैं पेबुल कहे जाते हैं इनका आकार-प्रकार गोल मटोल होता है । चापर बड़े आकार वाला वह उपकरण जो पेबुल से बनाया जाता है इसके ऊपर एक ही ओर फलक निकालकर धार बनाई जाती है । चापिंग उपकरण दुधारी होते हैं अर्थात पेबुल के दोनों ओर किनारों को छीलकर उसमें धार बनाई गई है।
(2) हैंड एक्स संस्कृति इसके उपकरण सर्वप्रथम मद्रास के समीप बदमदुरै तथा अतिरंपक्कम से प्राप्त किए गए यह साधारण पत्थरों के कोर तथा फ्लेक प्रणाली द्वारा निर्मित किए गए हैं इस संस्कृति की उपकरण क्लीवर एवं स्क्रेपर आदि हैं।
superb sir,,, very impressive
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