Monday, September 18, 2017

जैन धर्म

जैन धर्म के संस्थापक एवं प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ से जो काशी के इक्ष्वाकु वंश राजा अश्वसेन के पुत्र थे उन्होंने 20 वर्ष की अवस्था में सन्यास जीवन को स्वीकारा था।

उनके द्वारा दी गई शिक्षा थी-

(1) हिंसा ना करना
(2) सदा सत्य बोलना 
(3) चोरी ना करना
(4) संपत्ति ना रखना

महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें एवं अंतिम तीर्थंकर हुए महावीर का जन्म 540 ई पू कुंडलग्राम (वैशाली) में हुआ था ।
उनके पिता सिद्धार्थ ज्ञातृक कुल के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छवी राजा चेटक की बहन थी।

महावीर की पत्नी का नाम यशोदा एवं पुत्री का नाम प्रियदर्शनी था ।महावीर के बचपन का नाम वर्तमान था उन्होंने 20 वर्ष की उम्र में माता पिता की मृत्यु के पश्चात अपने बड़े भाई नंदिवर्धन से अनुमति लेकर सन्यास जीवन को स्वीकारा था ।

12 वर्षों की कठिन तपस्या के बाद महावीर को jrimbhik के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे तपस्या करते हुए संपूर्ण ज्ञान का बोध हुआ।

इसी समय से महावीर जिन (विजेता) , अहर्त (पूज्य) , निर्ग्रन्ध (बंधन हीन ) कहलाए । महावीर ने अपना उपदेश  प्राकृत भाषा में दिया महावीर का प्रथम अनुयाई उनके दामाद( प्रियदर्शनी के पति )जामिल बने ।

प्रथम जैन भिक्षुणी नर नरेश दधिवाहन की पुत्री चंपा थी ।महावीर ने अपने शिष्यों को 11 गणधरो में विभाजित किया था ।

आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गंधर्व था जो महावीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहा और जो जैन धर्म का प्रथम धेरा या मुख्य उपदेशक हुआ।

लगभग 300 ईसवी पूर्व के में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा जिसके कारण भद्रबाहु अपने शिष्यों सहित कर्नाटक चले गए किंतु कुछ अनुयायी स्थूलभद्र के साथ मगध में ही रुक गए ।भद्रबाहु के वापस लौटने पर मगध के साधुओं ने उनसे गहरा मतभेद हो गया ।जिसके परिणाम स्वरुप जैनमत
श्वेतांबर एवं दिगंबर नामक दो संप्रदायों में बट गया।

स्थूल भद्र के शिष्य श्वेतांबर( श्वेत वस्त्र धारण करने वाले )एवं भद्रबाहु के शिष्य दिगंबर (नग्न रहने वाले) कहलाए ।
जैन धर्म के त्रिरत्न 
(1) सम्यक दर्शन
(2) सम्यक ज्ञान 
(3) सम्यक आचरण

त्रिरत्न के अनुशीलन में निम्न पांच महापुरुषों का पालन अनिवार्य है 
(1) अहिंसा
(2) सत्य वचन 
(3)अस्तेय 
(4)अपरिग्रह 
(5) ब्रम्हचर्य

जैन धर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है ।जैन धर्म में आत्मा की मान्यता है। महावीर पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करते थे

जैन धर्म के सतभंगी ज्ञान में अन्य नाम स्यादवाद और अनेकांतवाद है। जैन धर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को शांख्यदर्शन से ग्रहण किया ।जैन धर्म मानने वाले कुछ राजा थे - उदयन ,बंद राजा, चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंग नरेश खारवेल ,राजपूत राजा और अमोघवर्ष, चंदेल शासक ।

मैसूर के गंग वंश के मंत्री चामुंड के प्रोत्साहन से कर्नाटक के स्वर्ण बेलगोला में 10 वीं शताब्दी के मध्य भाग में विशाल बाहुबली की मूर्ति (गोमतेश्वर की मूर्ति) का निर्माण किया गया ।
खजुराहो में जैन मंदिरों का निर्माण चंदेल शासकों द्वारा किया गया ।
मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केंद्र था मथुरा कला का संबंध जैन धर्म से है ।

जैन तीर्थंकरों की जीवनी भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में है 72 वर्ष की आयु में महावीर की मृत्यु(निर्वाण) 468 इसवी पूर्व बिहार राज्य के पावापुरी में हो गई । मल्लराजा सृस्तिपाल के राजप्रसाद में महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ।

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