Monday, September 18, 2017

इतिहास जाने के स्त्रोत

प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यता चार स्त्रोतों से प्राप्त होती है ।
(1) धर्म ग्रंथ
(2) ऐतिहासिक ग्रंथ
(3) विदेशियों का विवरण
(4) पुरातत्व संबंधी साक्ष्य

धर्म ग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्वपूर्ण जानकारी

भारत का सबसे प्राचीन धर्म ग्रंथ वेद है जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास को माना जाता है। वेद चार हैं 
(1) ऋग्वेद
(2) यजुर्वेद 
(3) सामवेद 
(4) अर्थववेद

ऋग्वेद - ऋचाओ के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है । इस में 10 मंडल 1028 सूक्त ( वाल खिल्य  पाठ के 11 सूत्र सहित ) एवं 10462 ऋचाये है। इन ऋचाओ को पढ़ने वाले ऋषि को होतृ कहते हैं । इस वेद से आर्य के राजनीतिक प्रणाली एवं इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है ।

विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है।

नवे मंडल में देवता सोम का उल्लेख है इसके आठवें मंडल में हस्त लिखित रचनाओं को खिल कहा जाता है।

चतुष्वर्ण समाज की कल्पना का आदि स्रोत ऋग्वेद के दसवें मंडल में वर्णित पुरुष सूक्त है । जिसके अनुसार चार वर्ण बाम्हण , क्षत्रिय , सूद्र और वैश्य आदि पुरुष ब्रह्मा के क्रमश: मुख , भुजा, जंघा एवं चरणों से उत्पन्न हुए हैं ।

नोट- धर्मसूत्र चार प्रमुख जातियों की स्थितियों व्यवसाय एवं दायित्वों कर्तव्य तथा विशेष अधिकारों  में  स्पष्ट विभेद करता है।

वामन अवतार के 3 पगों के आख्यान का प्राचीनतम स्त्रोत ऋग्वेद है ।

ऋग्वेद में इंद्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओ की रचना की गई है ।

प्राचीन इतिहास के साधन के रुप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है

यजुर्वेद - सस्वर पाठ के लिए मंत्र तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है। इसके पाठकर्ता को अध्वर्यु कहते हैं ।यह एक ऐसा वेद है जो गद्य एवं पद्य दोनों में है ।

शामवेद - यह गाए जा सकने वाली ऋचाओ  का संकलन है ।इसके पाठकर्ता को उद्रातृ  कहते हैं । इसे भारतीय संगीत का जनक माना जाता है ।

अथर्ववेद -अथर्व ऋषि द्वारा रचित इस वेद में रोग निवारण ,तंत्र मंत्र ,जादू टोना, शाप , वशीकरण आशीर्वाद ,की स्तुति , प्रयश्चित , औषधि , अनुसंधान विवाह ,प्रेम ,राजकर्म, मातृभूमि  आदि से सम्बन्धित विषयों के संबंध में मंत्र तथा सामान्य मनुष्य के विचारों विश्वास है अंधविश्वास हो आदि  का वर्णन है ।

इसमें सभा एवं समिति  को प्रजापति की दो पुत्रियां कहा गया है ।

सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है ।

वेदों को भलीभांति  समझने के लिए 6 वेदांगों की रचना हुई है।  यह है -

(1) शिक्षा 
(2) ज्योतिष 
(3) कल्प 
(4) व्याकरण 
(5) निरुक्त 
(6) छंद

भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध विवरण पुराणों में मिलता है ।इसके रचयिता लोमहर्ष अथवा  उनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं ।इनकी संख्या 18 है इसमें केवल पांच -मत्स्य, वायु, विष्णु ,ब्राह्मण एवं भागवत में ही  राजाओं की वंशावली पाई जाती है पुराणों में मत्स्य पुराण सबसे प्राचीन एवं प्रमाणित है।

अधिकतर पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखे गए हैं। स्त्रियां तथा सूद्र जिन्हें  वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी। वह पुराण सुन सकते थे पुराणों का पाठ पुजारी मंदिरों में किया करते थे ।

स्मृति ग्रंथों में सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक मनुस्मृति मानी जाती है यह शुंग काल का मानक ग्रंथ है ।
नारद स्मृति गुप्त युग के विषय में जानकारी प्रदान करता है ।
जातक में बुद्ध की पूर्व जन्म की कहानी वर्णित है ।

हीनयान का प्रमुख ग्रंथ कथावस्तु है ।जिसमें महात्मा बुद्ध का जीवन चरित्र का अनेक कथनको के साथ वर्णन है ।

जैन साहित्य को आगम कहा गया है जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास कल्पसूत्र से ज्ञात होता है ।
जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में महावीर के जीवन मृत्यु के साथ अन्य  स्म्कालिको  के साथ उनके संबंधों का विवरण मिलता है ।

अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य हैं यह 15 वर्णों एवं 180 प्रकरणों में विभाजित है   जिसमें मौर्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है ।

संस्कृत साहित्य के ऐतिहासिक घटनाओं का क्रमबद्ध लिखने का सर्व प्रथम प्रयास कल्हण ने किया कल्हण द्वारा रचित पुस्तक राजतरंगिणी है ।जिसका संबंध कश्मीर की इतिहास से है ।

अरबों की सिंध विजय का वृतांत चचनामा (लेखक अली अहमद )में सुरक्षित है।

अष्टाध्यायी  संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक है इसके लेखक पाणिनि है । इससे मौर्य की पहले का इतिहास तथा मौर्य युगीन राजनीतिक अवस्था की जानकारी प्राप्त होती है ।

कात्यायन की गार्गी संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है फिर भी इससे भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है ।

पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे उनकी महाभाष्य  से शुंगो  के इतिहास का पता चलता है।

विदेशी यात्रियों के विवरणों से मिलने वाली जानकारी

(1) यूनानी - रोमन लेखक

टेटियस-  यह ईरान का राजवैद्य था भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियां से पर आधरित होने के कारण अविश्वसनीय है ।

हेरोडोटस - इसे इतिहास का पिता कहा जाता है जिसने अपनी पुस्तक हिस्टोरीका में पांचवी शताब्दी ईसापूर्व के भारत फारस संबंध का वर्णन किया है। परंतु इसका विवरण भी अनुसूचियों एवं अफवाहों पर आधारित है।

सिकंदर के साथ आने वाले लेखकों में- निर्याकस , आनेसिक्रटस, तथा आस्टियोबुलस के विवरण अधिक प्रमाणित एवं विश्वसनीय है ।

मेगास्थनीज यह सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था। जो चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था उसने अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्य युगीन समाज की संस्कृति के विषय में लिखा ।

डाईमेकस यह सीरिया  नरेश एंटीयोकस का राजदूत था जो बिंदुसार के दरबार में आया था ।इसका विवरण मौर्य युग से  संबंधित है ।

डायोनिसिय- यह मिश्र नरेश टालमी का राजदूत था जो अशोक के दरबार में आया था ।

टालमी ने दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल नामक पुस्तक लिखी ।

प्लिनी -इसने सर्वप्रथम पहली शताब्दी में नेचुरल हिस्ट्री नामक पुस्तक लिखी इसमें भारतीय पशुओं पेड़ पौधों खनिज पदार्थो आदि के बारे में विवरण मिलता है।

पेरिप्लस ऑफ़ द इरिथ्रयन -इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है यह लेखक करीब 80 ईसवी में हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था उस समय के भारत के बंदरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओं के बारे में जानकारी दी गई है।

(2) चीनी लेखक -

फहीयान - यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था। इसने अपने विवरण में मध्य प्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है इसने मध्य प्रदेश की जनता को सुखी एवं समृद्ध बताया है ।

संयुगन -यह 518 ई वी में भारत आया जिसने अपने 3 वर्षों की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्रतियां एकत्रित की।

ह्वेनसांग -यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था वह 629 ईसवी में चीन से भारत के लिए प्रस्थान किया और लगभग 1 वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपीसा पहुंचा । भारत में 15 वर्षों तक ठहरकर 645 इस्वी में चीन लौट गया ।वह बिहार में नालंदा जिला में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत के बौद्ध ग्रंथ को एकत्रित कर ले जाने के लिए आया था इसका भ्रमण वृतांत सि-यू-की  नाम से प्रसिद्ध है । जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है जिसने हर्ष कालीन समाज धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है। इसके अनुसार सिंध का राजा शुद्र था । ह्वेनसांग  के अध्यन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे।

इत्सिंग - सातवीं शताब्दी के अंत में भारत आया उसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया।

अरवी लेखक

अलबरूनी यह मोहम्मद गजनबी के साथ भारत आया था अरबी में लिखी गई उसकी कृति किताब-उल-हिंद या तहकीक ए हिंद (भारत की खोज) आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है इस में राजपूत कालीन समाज धर्म रीति रिवाज राजनीति  पर सुंदर प्रकाश डाला गया है ।

अन्य लेखक

तारा नाथ - यह एक तिब्बती  लेखक था जिसने कन्ग्युर तथा तन्ग्युर नामक ग्रंथ की रचना  की इनसे भी भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है

मार्कोपोलो यह  13 वीं शताब्दी के अंत में पांड्य देश की यात्रा पर आया था इसका विवरण पांड्य इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है

पूरातत्व सम्बन्धी सक्ष्यो से मिलने वाली जानकारियां-

1400 इसवी पूर्व के अभिलेख बोगजकोई (एशिया माइनर )से वैदिक देवता मित्र ,अरुण, वरुण, इंद्र एवं नासत्य के नाम मिलते हैं ।

मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण यवन राजदूत होलियोडोरस के वेसनगर (विदिशा ) के गरुड़ स्तंभ लेख से प्राप्त होता है ।

सर्वप्रथम भारतवर्ष का जिक्र हाथीगुंफा अभिलेख में है।

सर्वप्रथम दुर्भिक्ष की जानकारी देने वाला अभिलेख सौहगौरा अभिलेख है ।

सर्वप्रथम भारत पर होने वाले हूण आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ लेख से प्राप्त होता है ।

सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख (शासक भानुगुप्त) से प्राप्त होती है।

रेशम बुनकर की श्रेणियों की जानकारी मंदसौर अभिलेख से प्राप्त होता है ।

अभिलेखों का अध्ययन की इपीग्राफी कहलाता है।

कश्मीर नवपाषाण पुरास्थल बुर्जहोम से गर्तआवास (गड्ढा घर )का साक्ष्य मिला है इसमें उतरने के लिए सीढ़ियां होती थी ।

प्राचीनतम सिक्को को आहत सिक्का कहा जाता है इसी को साहित्य में काषार्पणकहा गया है ।

सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया।

समुद्रगुप्त की वीणा बजाती हुई मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीत प्रेमी होने का प्रमाण मिलता है ।

आरिकमेडू (पुदुच्चेरी के निकट )से रोम सिक्के प्राप्त हुए हैं। जो प्राचीन काल में भारत रोम व्यापार के द्योतक है ।

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