हिमालय पर्वत के दक्षिण तथा हिंद महासागर के उत्तर में स्थित एशिया महाद्वीप का विशाल प्रायद्वीप भारत कहा जाता है । इसका विस्तृत क्षेत्र के कारण एक उपमहाद्वीप कहा जाता है आकार में विषम चतुर्भुज जैसा है । यह लगभग 2500 मील लंबा और 2000मील में चौड़ा है रूस को छोड़कर विस्तार में समस्त यूरोप के बराबर है । यूनानियों ने देश को इंडिया तथा मध्यकालीन लेखकों ने इस देश को हिंदू अथवा हिंदुस्तान के नाम से संबोधित किया है।
भौगोलिक दृष्टि से इसके चार भाग किए जा सकते हैं-
(1) उत्तर का पर्वतीय प्रदेश -यह तराई के दलदली वनों से लेकर हिमालय की चोटी तक विस्तृत है जिसमें कश्मीर ,कांगड़ा ,कन्याकुमारी तथा सिक्किम प्रदेश सम्मिलित है
(2) गंगा तथा सिंधु का उत्तरी मैदान- इस प्रदेश में सिंध तथा उसकी सहायक नदियों की घाटियां है । तथा राजस्थान के रेगिस्तानी भाग तथा गंगा और यमुना द्वारा सिंचित प्रदेश सम्मिलित है। देश का यह एक सर्वाधिक उपजाऊ भाग है ।यहां आर्य संस्कृति का विकास हुआ इसे ही आर्यवर्त कहा गया।
(3) दक्षिण का पठार- इस प्रदेश के अंतर्गत उत्तर में नर्मदा तथा दक्षिण में कृष्णा और तुम भद्रा के बीच का भूभाग आता है ।
(4) सुदूर दक्षिण के मैदान -इसमें दक्षिण के लंबे एवं संकीर्ण समुद्री क्षेत्र सम्मिलित हैं इस भाग में गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के उपजाऊ डेल्टा वाले प्रदेश आते हैं ।दक्षिण का पठार तथा सुदूर दक्षिण के प्रदेश मिलकर आधुनिक दक्षिण भारत का निर्माण करते हैं। नर्मदा तथा ताप्ती नदियां , विन्ध्य तथा सतपुडा पहाड़ियां और महाकालांतर के वन मिलकर उत्तर भारत को दक्षिण भारत से पृथक करते हैं ।इस पृथकता के परिणाम स्वरुप दक्षिण भारत आर्य संस्कृति के प्रभाव से मुक्त रहा जबकि उत्तर भारत में आर्य संस्कृति का विकास व दक्षिण भारत में एक सर्वथा विभिन्न संस्कृति विकसित हुई जिसे द्रविण कहा जाता है ।इस संस्कृति में अवशेष आज भी दक्षिण में विद्यमान है ।
प्रकृत ने भारत को एक विशेष भौगोलिक इकाई प्रदान की है उत्तर में हिमालय पर्वत एक ऊँची दीवार के समान उसकी रक्षा करता रहा है तथा हिंद महासागर इस देश को पूर्व पश्चिम तथा दक्षिण से घेरे हुए हैं इस प्राकृतिक सीमाओं द्वारा वाह्य आक्रमणों से अधिकांश सुरक्षित रहने के कारण भारत देश में अपनी एक सर्वथा स्वतंत्र तथा पृथक सभ्यता का निर्माण कर सका है भारतीय इतिहास पर यहां के भूगोल का गहरा प्रभाव पड़ा है यहां के प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अलग अलग कहानी रही है एक और ऊंचे ऊंचे पर्वत हैं तो दूसरी ओर नीचे के मैदान , एक ओर अत्यंत उपजाऊ प्रदेश है तो दूसरी ओर विशाल रेगिस्तान है। यहां उभरे पठार घने वन तथा एकांत घाटियां है एक ही साथ कुछ स्थान अत्यंत उष्ण और कुछ अत्यंत शीतल विभिन्न भौगोलिक उप विभागों के कारण यहां प्राकृतिक एवं सामाजिक स्तर पर विभिन्नताएँ दृष्टिगोचर होती है ।ऐसी विषमता यूरोप में कहीं नहीं दिखाई देती है। भारत का प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र एक विशिष्ट इकाई के रुप में विकसित हुआ है तथा उसने सदियों तक अपनी विशेषता बनाए रखी है इसके लिए प्रजातीय तथा भाषागत तत्व भी उत्तरदाई रहे हैं।
फलस्वरुप संपूर्ण देश में राजनैतिक एकता की स्थापना कभी भी संभव नहीं हो सकी यद्यपि अनेक समय में इसके लिए महान शासक द्वारा प्रयास किया जाता रहा है भारत का इतिहास एक प्रकार से केंद्रीकरण तथा विकेंद्रीकरण की प्रवृतियों के बीच निरंतर संघर्ष की कहानी है
देश की विशालता तथा विश्व के शेष भागो से इस की पृथकता अनेक महत्वपूर्ण परिणाम उत्पन्न किए हैं। भारत के अपने आप में एक विशेष भौगोलिक इकाई होने के कारण भारतीय शासकों तथा सेनानायकों ने देश के बाहर साम्राज्य विस्तार करने अथवा अपनी सैनिक महत्वकांक्षाओं की पूर्ति करने का कभी कोई प्रयास नहीं किया बल्कि उन्होंने अपने साम्राज्य विस्तार भारत में ही किया ।
सुदूर दक्षिण में चोलो का उदाहरण इस विषय में एक अपवाद माना जा सकता है ।अति प्राचीन समय में यहां भिन्न भिन्न जाति, भाषा, धर्म, वेशभूषा तथा अचार विचार के लोग निवास करते रहे हैं किसी भी बाहरी प्रवेशक को यहां विभिन्नताएं खटक सकती है
परंतु इन वाह्य विभिन्नताओं के मध्य एकता दिखाई देती है जिसकी कोई भी उपेक्षा नहीं कर सकता फल स्वरुप विभिन्नता में एकता भारतीय संस्कृति की सर्वप्रमुख विशेषता बन गई है ।देश के समान प्राकृतिक सीमाओं ने यहां के निवासियों के मस्तिष्क में समान मातृभूमि की भावना जागृत की है मौलिक एकता का विचार यहां सदैव बना रहा तथा इस ने देश के राजनैतिक आदर्शों को प्रभावित किया यद्यपि व्यवहार में राजनैतिक एकता बहुत कम व स्थापित हुई तथापि राजनीतिक सिद्धांत के रूप में इसे इतिहास के प्रत्येक युग में देखा जा सकता है सांस्कृतिक एकता अधिक सुस्पष्ट रही है भाषा साहित्य सामाजिक तथा धार्मिक आदर्श इस एकता के प्रमुख माध्यम रहे ।
भारतीय इतिहास में अति प्राचीन काल से ही हमें इस मौलिक एकता के दर्शन होते हैं महाकाव्य तथा पुराणों में एक संपूर्ण देश को भारतवर्ष अर्थात् भरत का देश तथा यहां के निवासियों को भारती (भरत की संतान) कहा गया है विष्णु पुराण में स्पष्टत: है इस एकता की अभिव्यक्ति हुई है -समुद्र के उत्तर में तथा हिमालय के दक्षिण में जो स्थित है वह भारत देश है तथा यहां की संताने भारती है।
प्राचीन कवियों लेखकों तथा विचारकों के मस्तिष्क में एकता की एक भावना सदियों पूर्व ही विद्यमान रही है कौटिल्य अर्थशास्त्र में कहा गया है कि हिमालय से लेकर समुद्र तट हजार योजन विस्तार वाला भाग चक्रवर्ती राजा का शासन क्षेत्र होता है यह सार्भौम सम्राट की अवधारणा भारतीय सम्राटों को अत्यंत प्राचीन काल से ही प्रेरणा देती रही है भारतीयों की प्राचीन धार्मिक भावनाओं एवं विश्वासों में भी इस सारभूत एकता का परिचय मिलता है
यहां की सात पवित्र नदियां -गंगा, यमुना ,गोदावरी, सरस्वती ,नर्मदा, सिंधु ,कावेरी ।
सात पर्वत -महेंद्र , मलय, सह्वा, शुक्तिमान ,विंध्य ,ऋक्षय, तथा पारियात्र।
सात नगरियाँ -अयोध्या, मथुरा , माया , काशी ,कांची अवंति, पुरी कथा द्वारावती
देश के विभिन्न भागों में बसी हुयी होने पर भी देश के सभी निवासियों के लिए समान रूप से श्रद्धेय रही है वेद पुराण उपनिषद रामायण महाभारत आदि ग्रंथों का सर्वोच्च सम्मान है तथा शिव और विष्णु आदिदेवता सर्वत्र पूजे जाते है । यद्यपि यहां अनेक भाषाएं तथापि वे सभी संस्कृत से ही उद्भूत अथवा प्रभावित है धर्म शास्त्रों द्वारा प्रतिपादित सामाजिक व्यवस्था भी सर्वत्र एक ही समान है ।वर्णाश्रम ,पुरुषार्थ आदि सभी समाजों के आदर्श रहे हैं । प्राचीन समय में जबकि आवागमन के साधन का आभाव था । पर्यटक, धर्मोपदेशक, तीर्थयात्री ,विद्यार्थी आदि इस एकता को स्थापित करने में सहयोग प्रदान करते रहे हैं राजसूय, अश्वमेघ यज्ञ के अनुष्ठान द्वारा चक्रवर्ती पद के आकांक्षी सम्राट ने सदैव इस भावना को व्यक्त किया है कि भारत का विशाल भूखंड एक है इस प्रकार विभिन्नता के बीच सारभूत एकता भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता बनी हुई है
No comments:
Post a Comment