Friday, September 29, 2017

सय्यैद वंश ( 1414- 1451ई.)

सैयद वंश का संस्थापक खिज्र खां था इसने सुल्तान की उपाधि न धारण कर अपने को रैयत आला की उपाधि से ही खुश रखा ।

खिज्र खां  तैमूर लंग का सेनापति था भारत से लौटते समय तैमूर लंग ने खिज्र खां को मुल्तान लाहौर एवं दीपालपुर का शासक नियुक्त किया।

खिज्र खां नियमित रूप से तैमूर के पुत्र शाहरुख को कर भेजता था।

चित्र खां की मृत्यु 20 मई 1421 में हो गई ।खिज्र खां के पुत्र मुबारक खा ने शाह की उपाधि धारण की।

याहिया बिन अहमद सरहिंदी को मुबारक शाह का संरक्षण प्राप्त  था इसकी पुस्तक तारीख ए मुबारक शाही में सैय्यद वंश के विषय में जानकारी मिलती है।

यमुना के किनारे मुबारकाबाद की स्थापना मुबारक शाह ने की थी।

सैय्यद वंश का अंतिम सुल्तान अलाउद्दीन आलमशाह था ।

सैय्यद वंश का शासन करीब 37 वर्षों तक रहा।

तुगलक वंश

5 सितंबर 1320 ईस्वी में खुशरों खा को पराजित करके गाजी मलिक या तुगलक गाजी,  गयासुद्दीन तुगलक के नाम से 8 सितंबर 1320 ईस्वी को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।

गयासुद्दीन तुगलक ने करीब 29 बार मंगोल आक्रमण को विफल किया।
गयासुद्दीन ने अलाउद्दीन के समय मे लिए  गए अमीरों की भूमि को पुनः लौटा दिया।
इसमें सिंचाई के लिए कुएं एवं नहरों का निर्माण करवाया संभवता नहरों का निर्माण करवाने वाला गयासुद्दीन प्रथम शासक था।

गयासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के समीप स्थित पहाड़ियों पर तुगलकाबाद नाम का एक नया नगर स्थापित किया, रोमन शैली में निर्मित इस नगर में एक दुर्ग का निर्माण भी हुआ इस दुर्ग को छप्पनकोट के नाम से जाना जाता है ।

गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु 1325 ईस्वी में बंगाल के अभियान से लौटते समय जूना खा के द्वारा बनाए लकड़ी के महल में दबकर हो गई ।

गयासुद्दीन के बाद जूना खा मोहम्मद बिन तुगलक के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा ।
मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मोहम्मद तुगलक सार्वअधिक शिक्षित,  विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था।

मोहम्मद बिन तुगलक को अपनी सनक भरी  परियोजनाओं , क्रूर कृत्य एवं दूसरे के सुख-दुख के प्रति उपेक्षा भाव् रखने के कारण उसे  स्वपनशील, पागल एवं रक्त पिपासु कहा गया ।

मोहम्मद बिन तुगलक ने कृषि के विकास के लिए अमीर ए कोही नामक एक नवीन विभाग की स्थापना की ।
मोहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरी स्थानांतरित की और इसका नाम दौलताबाद रखा ।
सांकेतिक मुद्रा के अंतर्गत मोहम्मद बिन तुगलक ने पीतल (फरिश्ता के अनुसार ) तांबा (बरनी के अनुसार) धातुओं के सिक्के चलवाए जिनका मूल्य चांदी के रुपए टंका के बराबर ही होता था।

अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता लगभग 1333 ई में भारत आया सुल्तान ने इसे दिल्ली का काजी नियुक्त किया।

1342 ईस्वी में सुल्तान ने इसे अपने राजदूत के रूप में चीन भेजा इब्नबत्तूता की पुस्तक रेहला में मोहम्मद तुगलक के समय की घटनाओं का वर्णन है इसने अपनी पुस्तक में विदेशी व्यापारियों के आगमन डाक चौकियों की स्थापना यानी डाक व्यवस्था एवं गुप्तचर व्यवस्था के बारे में लिखा ।

मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु 20 मार्च 1351 ई में सिंधु जाते समय खट्टा के निकट गोडाल में हो गई।

मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में दक्षिण में हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने 1336 में स्वतंत्र राज्य विजय नगर की स्थापना की ।

महाराष्ट्र में अलाउद्दीन बहमन शाह ने 1347 ई  में स्वतंत्र राज्य बहमनी राज्य की स्थापना की ।

मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु पर इतिहासकार बरनी लिखता है अंततः लोगों को उस से मुक्ति मिली और उसे लोगों से ।

मोहम्मद बिन तुगलक शेख अलाउद्दीन का शिष्य था वह सल्तनत का पहला शासक था जो अजमेर में शेख मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह और बहराइच से सलार मसूद गाजी के मकबरे में गया ।

मोहम्मद बिन तुगलक ने बदायूं में मीरन मुलहीम,
दिल्ली के शेख निजामुद्दीन औलिया ,
मुल्तान के शेख रुकनुद्दीन और

अजुधन  के शेख मुल्तान आदि संतो की कब्र पर मकबरे बनवाए।

फिरोज तुगलक का राज्यभिषेक थट्टा के नजदीक 20 मार्च 1351ई को हुआ पुन: फिरोज का राज्यभिषेक दिल्ली में अगस्त 1351 ई में हुआ । खलीफा द्वारा इसे कासिम अमीर उल मोममीन की उपाधि दी गयी ।

राज व्यवस्था के अंतर्गत फिरोज ने अपने शासनकाल में 24 कष्टदायक करों को समाप्त कर केवल चार कर खराज ( लगान) , ख़ुम्स (युद्ध में लूट का माल) एवं जजिया , जकात कर वसूल करने का आदेश दिया।

जाजिया कर ब्राम्हणों भी लागू किया गया । फिरोज तुगलक ने 5 बड़ी नहर का निर्माण कराया।

  फिरोज तुगलक ने 300 नये नगरों की स्थापना की इसमें हिसार, फिरोजाबाद ,फतेहाबाद ,जौनपुर, फिरोजपुर, प्रमुख है ।

इस के शासनकाल में खिजराबाद (टोपरा गाँव )  एवं मेरठ से अशोक की दो स्तंभो को लाकर दिल्ली में स्थापित किया गया ।

सुल्तान फिरोज तुगलक में अनाथ मुस्लिम महिलाओं विधवा को एवं लड़कियों की सहायता के लिए नये विभाग दीवान ऐ खैरात की स्थापना की ।

सल्तनत कालीन  सुल्तानों में फिरोज के शासनकाल में सबसे अधिक दासो की संख्या लगभग एक लाख 80 हजार थी ।

फिरोज तुगलक के समय में दासो  की देखभाल के लिए फिरोज ने एक नए विभाग दीवान ए बंदगान की स्थापना की।

सैन्य पदों को वंशानुगत कर दिया उसने अपनी आत्मकथा फतूहात ए फिरोजशाही की रचना की। इसने जियाउद्दीन बरनी एवम सम्स सिराज अफीफ तो अपना संरक्षण प्रदान किया ।

इसने ज्वालामुखी मंदिर के पुस्तकालय से लूटे गए 1300 ग्रंथों में से कुछ को फारसी के विद्वान अलाउद्दीन द्वारा द्लायते फिरोजशाही नाम से अनुवाद कराया।

इसने  चांदी तांबा मिश्रित सिक्के भारी मात्रा में जारी करें जिन्हे अद्धा एवं भिख कहा जाता था।

फिरोज तुगलक की मृत्यु सितंबर 1388 हो गई।

फिरोज के काल में निर्मित खान ए जहां तेलंगानी के मकबरा की तुलना जेरुशलम में निर्मित उमर के मस्जिद से की जाती है।

सुल्तान फिरोज ने दिल्ली में कोटला फिरोजशाह दुर्ग का निर्माण कराया।

तुगलक वंश का अंतिम शासक नसीरुद्दीन मुहम्मद तुगलक था इसका शासन दिल्ली से पालम तक ही रह गया था ।

तैमूरलंग ने सुल्तान नसीरुद्दीन मुहम्मद तुगलक के समय 1398 में दिल्ली पर आक्रमण किया ।

नसीरुद्दीन के समय में ही मलिकुशर्शक ( पूर्वाधिपति)  की उपाधि धारण कर एक हिजड़ा मलिक सरवर ने जौनपुर में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना किए।

Monday, September 25, 2017

सल्तनत काल

सल्तनत काल में आने वाले वंशो को याद करने के लिए ट्रिक

गुल खिले तुम सायद लोगे

गुल - गुलाम वंश

खिले - खिलजी

तुम - तुगलक

सायद - सैय्यद

लोगे - लोदी

                        - गुलाम वंश -

गुलाम वंश की स्थापना 1206 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया था। वह गौरी का गुलाम था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपना राज्यभिषेक 24 जून 1206ई. में किया था । ऐबक ने अपनी राजधानी लाहौर में बनाई थी । क़ुतुबमीनार की नीव  कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही डाली थी ।दिल्ली का कुवत उल इस्लाम मस्जिद एवं अजमेर का ढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण ऐबक ने कराया था ।

कुतुबुद्दीन एबक को लाख बख्श ( लाखों का दान करने वाला) भी कहा जाता था। प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय को ध्वस्त करने वाला ऐबक का सहायक सेनानायक बख्तियार खिलजी था ।

ऐबक की मृत्यु 1210 ईस्वी में चौगान खेलते समय घोड़े से गिरकर हो गई इससे लाहौर में दफनाया गया।

ऐबक का उत्तराधिकारी आरामशाह हुआ जिसने सिर्फ 8 महीने तक शासन किया आरामशाह की हत्या करके इल्तुतमिश 1211 ईस्वी में दिल्ली की गद्दी पर बैठा । इल्तुतमिश तुर्किस्तान का इल्बरी तुर्क एवं ऐबक  का गुलाम तथा दमाद था ।

यह ऐबक की मृत्यु के समय में बदायूं का गवर्नर था इल्तुतमिश लाहौर से राजधानी को स्थानांतरित कर के दिल्ली ले आया। इल्तुतमिस पहला शासक था जिसने 1229ई. में बगदाद के खलीफा से सुल्तान पद की वैधानिक उपाधि प्राप्त की थी ।

उसकी मृत्यु अप्रैल 1236 ई. में हो गई। इल्तुतमिश के बाद उसका पुत्र  रुक्नुद्दीन फिरोज गद्दी पर बैठा । यह अयोग्य शाशक था उसने अल्पकालीन शासन पर उसकी मां शाह तुरकान छाई रही । के अवांछित प्रभाव से परेशान होकर तुर्की अमीरों ने को रुक्नुद्दीन  को हटाकर रजिया को सिंहासन पर आसीन किया ।

इस प्रकार रजिया बेगम प्रथम मुस्लिम महिला थी जिसने शासन की बागडोर संभाली।
रजिया ने प्रदा प्रथा का त्याग कर तथा पुरुषों की तरह चोंगा( काबा) एवं कुलाह (टोपी) पहनकर दरबार में खुले मुंह से जाने लगी।

रजिया ने मलिक जमालउद्दीन याकूत को आमिर-ऐ-अखुर (घोड़े का सरदार )नियुक्त किया । गैर तुर्को को सामन्त बनाने के रसिया के प्रयासों से तुर्की अमीर विरुद्ध हो गए और उसे बंधी बनाकर दिल्ली की गद्दी पर मोइनुद्दीन बहरामशाह को को बैठा दिया ।

रजिया की शादी अल्तुनिया के साथ हुई उसने शादी के बाद रजिया को पुनः गद्दी प्राप्त करने का प्रयास किया लेकिन वह असफल रहा । रजिया की हत्या 1240 ई में डाकुओं द्वारा कैलाश के पास कर दी गई।

बहरामशाह को बंदी बनाकर उसकी हत्या मई 1242 ई में कर दी गई 
बहराम शाह के बाद दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन मसूद शाह 1242 ई में बना।

बलवन ने षड्यंत्र के द्वारा 1246 में अलाउद्दीन मसूद शाह सुल्तान पद से हटाकर नसीरुद्दीन मोहम्मद को सुल्तान बना दिया । नसीरुद्दीन मोहम्मद अहमद ऐसा सुल्तान था जो टोपी सी कर अपना जीवन निर्वाह करता था ।

बलवन ने अपनी पुत्री का विवाह नसीरुद्दीन मोहम्मद के साथ किया था बलवंत का वास्तविक नाम बहाउद्दीन था वह  इल्तुतमिश का गुलाम था ।

तुर्कान ए चिहलगानी का विनाश बलवन ने ही किया था बलवान 1206 ईस्वी में गयासुद्दीन बलबन के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा ।

वह मंगोल के आक्रमण से दिल्ली की रक्षा करने में सफल रहा ।

राज दरबार में सिजदा एवं पैबोस प्रथा की शुरुआत बलवन ने की थी।

बलवन ने फारसी रीति रिवाज पर आधारित नवरोज उत्सव को प्रारंभ कराया।

अपने विरोधियों के प्रति बलबन ने कठोर लौह  एवं रक्त की नीति अपनाई।

नसरुद्दीन मोहम्मद ने बलवान को उल्लू खां की उपाधि प्रदान किया ।

बलवन के दरबार में फारसी प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो एवं अमीर हसन रहते थे गुलाम वंश का अंतिम शासक समसुद्दीन कैमूर था

                - खिलजी वंश -

गुलाम वंश के शासन को समाप्त कर 13 जून 1290 ई में जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने खिलजी वंश की स्थापना की।

इसने किलोखरी को अपनी राजधानी बनाया। जलालुद्दीन की हत्या 1296 ई में उसके भतीजे एवं दामाद अलाउद्दीन खिलजी ने कड़ामानिकपुर (इलाहाबाद) में कर दी ।

22 अक्टूबर 1296 ई में अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना ।
अलाउद्दीन के बचपन का नाम अली तथा गुरसाय्प था।

अलाउद्दीन खिलजी ने सेना को नकद वेतन देने एवं स्थाई सेना की नीव रखी।
दिल्ली के शासको में अलाउद्दीन खिलजी के पास सबसे विशाल स्थाई थी।

घोड़ो को दागने एवं सैनिकों के हुलिया रखने की प्रथा की शुरुआत अलाउद्दीन खिलजी ने की।
अलाउद्दीन एवं राजस्व की दर को बढ़ाकर उपज का 1/2 कर दिया इसने ख्म्स (लूट का धन ) में सुल्तान का हिस्सा 1/4 के स्थान पर 3/4 भाग कर दिया।

इसने व्यापारियों में बेईमानी रोकने के लिए कम तोड़ने वाले व्यक्ति के शरीर से मांस काट लेने का आदेश दिया ।

इसने अपने शासनकाल में मूल्य नियंत्रण प्रणाली को दृढ़ता से लागू किया ।
दक्षिण भारत की विजय के लिए अलाउद्दीन ने मलिक काफूर को भेजा ।

जमायत खाना मस्जिद , अलाई दरवाजा , सीरी का किला तथा हजार खंभा महल का निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने कराया था।

दैवी अधिकार के सिद्धांत को अलाउद्दीन ने चलाया था ।
सिकंदर ए सानी की उपाधि से स्वयं को अलाउद्दीन खिलजी ने विभूषित किया ।
अलाउद्दीन ने मलिक की याकूब को दीवान ए रियासत नियुक्त किया था

अलाउद्दीन द्वारा नियुक्त परवाना नवीस नामक अधिकारी वस्तुओं की परमिट जारी करता था।
शाहना ए मंडी -जहां खदानों की बिक्री हेतु लाया जाता था ।

सराय - ए - अदल -  जहां वस्त्र शक्कर जड़ी बूटी मेवा दीपक का तेल व अन्य निर्मित वस्तुएं बिकने के लिए आती थी ।

अलाउद्दीन खिलजी की आर्थिक नीति की व्यापक जानकारी जियाउद्दीन बरनी की कृति तारीख ए फिरोजशाही से मिलती है ।

मुल्य नियंत्रण को सफल बनाने के लिए मुहतसिब  (सेंसर )एवं नाजिर (नापतोल अधिकारी) की महत्वपूर्ण भूमिका थी ।

राजस्व सुधार के अंतर्गत अलाउद्दीन ने सर्वप्रथम मिल्क, इनाम एवं वक्फ़ के अंतर्गत की गई भूमि को वापस लेकर इसे खालसा भूमि बदल दिया।

अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा लगाई जाने वाली दो नवीन कर - (1) चराई कर और (3) गढ़ी कर

गढ़ी कर , मकानो और झोपड़ियों पर लगाया जाता था ।चराइ कर दुधारू पशुओं पर लगाया गया था ।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु 5 जनवरी 1316ई में हो गयी ।कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी 1984 में दिल्ली के सिंहासन पर बैठा ।

उसे नग्न स्त्री पुरुष की संगत पसंद थी मुबारक खिलजी कभी-कभी राज दरबार में स्त्रियों का वस्त्र पहनकर आता था ।

बरनी के अनुसार मुबारक कभी-कभी मन होकर दरबारियों के बीच दौड़ा करता था ।
मुबारक खान खलीफा की उपाधि धारण की थी मुबारक के वजीर खुसरो खां ने 15 अप्रैल 1320 ईस्वी में इसकी हत्या कर दी और स्वयं दिल्ली के सिंहासन पर बैठा खुसरू खा ने पैगंबर के सेनापति की उपाधि धारण की।

भारत पर अरबो का आक्रमण

मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में अरबों ने भारत पर पहला सफल आक्रमण किया ।
अरबों ने सिंध पर 712 ई. में विजय पाई थी ।
अरब आक्रमण के समय सिंध पर दाहिर का शासन था भारत पर अरब वासियों के आक्रमण का मुख्य उद्देश धन दौलत लूटना तथा इस्लाम धर्म का प्रचार प्रसार करना था ।

महमूद गजनी

अल्पतगीन नामक एक तुर्क असरदार गजनी साम्राज्य का संस्थापक था। अलप्तगीन का गुलाम तथा दामाद सुबुक्तगीन था।

महमूद गजनी सुबुक्तगीन का पुत्र था ।उसने पिता के काल में गजनी खुरासान का शासक था ।महमूद गजनी 27 वर्ष की अवस्था में 997 ई. में गद्दी पर बैठा।

बगदाद का खलीफा अलादिर- बिल्लाह  ने मोहम्मद गजनी के पद को मान्यता प्रदान किया ।
से यमीन-उद- दौला तथा यमीन-ऊल-मिल्लाह की उपाधि दी।

महमूद गजनी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया। महमूद गजनी भारत पर पहला आक्रमण 1001ई  में किया था यह आक्रमण शाही राजा जयपाल के विरुद्ध था इसमें जयपाल की पराजय हुई थी।

महमूद गजनी ने 1008 में नगरकोट के विरुद्ध हमले में मूर्ति वाद के विरुद्ध पहेली महत्वपूर्ण जीत बताई थी।
महमूद गजनी ने थानेश्वर के चक्रस्वामीन की कास्य  निर्मित आदमकद मूर्ति को गजनी भेजकर रंगभूमि  में रखवाया था।

महमूद गजनी का सबसे चर्चित आक्रमण 1024 ई में सोमनाथ मंदिर( सौराष्ट्र )पर हुआ था. इस मंदिर की लूट में उसे करीब 2000000 दीनार की संपत्ति हाथ लगी सोमनाथ की रक्षा में सहायता करने के कारण अन्हिलवाड़ा के शासक पर महमूद ने आक्रमण किया।

सोमनाथ मंदिर लूट कर ले जाने के क्रम में महमूद पर जाटों ने आक्रमण किया और कुछ संपत्ति लूट ली थी महमूद गजनी का अंतिम भारतीय आक्रमण 1027 ई. में जाटों के विरुद्ध महमूद गजनी की मृत्यु 1030 में हो गई ।
अलबरूनी , फिरदौसी, उत्बी तथा फारूखी महमूद गजनवी के दरबार में रहते थे।



            मुहम्मद गौरी

गौर , मोहम्मद गजनी के अधीन एक छोटा सा राज्य था । 1173 ई.ं में शहाबुद्दीन मोहम्मद गौरी गौर का शासक बना । इसने भारत पर पहला आक्रमण 1175 ईस्वी में मुल्तान के विरुद्ध किया था ।मोहम्मद गौरी का दूसरा आक्रमण 1178 ई में पाटन (गुजरात) पर हुआ।
वहां के शासक भीम द्वितीय ने गौरी को बुरी तरह परास्त किया ।मोहम्मद गौरी भारत के विजित प्रदेश पर अपने  शासन का भार ने गुलाम सेनापतियों को सौपते हुए गजनी लौट गया ।मोहम्मद गौरी की हत्या  15 मार्च 1206 ई को कर दी गई।

          मुहम्मद गौरी के प्रमुख युद्ध

तराईन का प्रथम युद्ध 1191 ई में गौरी और पृथ्बी राज के बीच हुआ जिसमे पृथ्वीराज की विजय हुयी।

तराईन का द्वितीय युद्ध 1192 ई में हुआ जिसमे पृथ्वीराज की हार हुयी ,

चन्दावर का युद्ध 1194  में गौरी और जयचन्द के बीच हुआ जिसमे गौरी को विजय प्राप्त हुयी।

राष्ट्रकूट वंश

राष्ट्रकूट वंश का संस्थापक दंतिदुर्ग(752ई.) था ।
इसकी राजधानी मनकिर या मान्यखेत ( वर्तमान मालखेड , शोलापुर के निकट) थी।

राष्ट्रकूट वंश के प्रमुख शासक थे
(1) कृष्ण प्रथम

(2) ध्रुव

(3) गोविंद तृतीय

(4) अमोघवर्ष

(5) कृष्ण द्वितीय

(6) इंद्र तृतीय

(7) कृष्ण तृतीय

एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण कृष्ण प्रथम ने कराया था ।
ध्रुव राष्ट्रकूट वंश का पहला शासक था जिसने कन्नौज पर अधिकार करने हेतु त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया और प्रतिहार नरेश वत्सराज एवं पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया ।

ध्रुव को धारावर्ष भी कहा जाता था ।

गोविंद तृतीय ने त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेकर चक्रायुद्ध एवं उसके संरक्षक  तथा प्रतिहार वंश के शासक नागभट्ट द्वितीय को पराजित किया ।
पल्लव ,पांड्य, केरल एवं गंग शासकों के संघ को गोविंद तृतीय नष्ट किया ।

अमोघवर्ष जैन धर्म का अनुयायी था उसने कन्नड़ में कविराजमार्ग की रचना की ।

आदिपुराण की रचनाकार जिनसेंन,
गणितासार संग्रह के लेखक महावीराचार्य एवं अमोघवृति  के लेखक सक्त्याना अमोघवर्ष के दरबार में रहते थे ।

अमोधवर्ष ने तुंगभद्रा नदी में जल समाधि लेकर अपने जीवन का अंत किया।

इंद्र तृतीय शासन काल में अरब निवासी आलमसुदी भारत आया। इसमें तत्कालीन राष्ट्रकूट शासक को भारत का सर्वश्रेष्ठ शासक कहा ।राष्ट्रकूट वंश का अंतिम महान शासक कृष्ण तृतीय था । इसी के दरबार में कन्नड़ भाषा की कवि पोन्न रहते थे । जिन्होंने शांतिपूराण की रचना की ।

कल्याणी के चालुक्य तैलप- द्वितीय ने 973 ई. में कर्क को हराकर राष्ट्रकूट राज्य पर अपना अधिकार कर लिया और कल्याणी के चालुक्य वंश की नींव डाली।

एलोरा एवं एलीफेंटा महाराष्ट्र वह मंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूटों के समय में ही हुआ एलोरा की 34 शैलाकृत गुफाएं हैं जिनमें 1 से 12 तक बौद्धों, 13 से 29 तक हिंदुओं एवं 30 से 34 जैनों की गुफाएं है ।

राष्ट्रकूट ,शैव ,वैष्णव ,शाक्त संप्रदाय के साथ-साथ जैन धर्म के भी उपासक थे। राष्ट्रकूटों ने अपने राज्य में मुसलमान व्यापारियों को बसने तथा इस्लाम का प्रचार करने की स्वीकृति दी।

पल्लव वंश

पल्लव वंश का संस्थापक सिंहविष्णु (575 -600ई) था उसकी राजधानी कांची (तमिलनाडु के कांचीपुरम) थी ।

यह  वैष्णव धर्म का अनुयायी था।
किरातार्जुनीयम के लेखक भारवि सिंहविष्णु के दरबार में रहते थे ।

पल्लव वंश के प्रमुख शासक हुए क्रम-

(1)  महेंद्र वर्मन प्रथम (600 -630 ई.)

(2) नरसिंह सिंह वर्मन प्रथम( 630 668 ई.)

(3) महेंद्र वर्मन द्वितीय (668 से 670)

(4) परमेश्वर वर्मन प्रथम (670-680ई.)

(5) नरसिंह वर्मन द्वितीय (704- 728ई.)

(6)  नंदी वर्मन द्वितीय (731 से 795 ई.)

पल्लव वंश का अंतिम शासक अपराजित ( 879 से 897) हुआ।

मतविलास प्रहसन की रचना महेंद्र वर्मन ने की थी। महाबलीपुरम के एकाश्म मंदिर जिसे रथ कहा गया है का निर्माण पल्लव राजा नरसिंह वर्मन प्रथम के द्वारा कराया गया था ।
रथ मंदिरों में सबसे छोटा द्रौपदी रथ है जिसमें किसी प्रकार का अलंकरण नहीं मिलता।

वातापीकोंड की उपाधि नरसिंहवर्मन प्रथम ने धारण की थी ।अरबों के आक्रमण के समय पल्लवो का शासक नरसिंह वर्मन द्वितीय था ।उसने राजासिंह ( राजाओ में सिंह), आगमप्रिय (शास्त्रों का प्रेमी), शंकरभक्त (भगवान शिव का उपासक )आदि की उपाधि धारण की।

उसने कांची के कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण कराया जिसे राजसिद्धेश्वर मंदिर भी कहा जाता है ।इसी मंदिर के निर्माण में द्रविड़ स्थापत्य कला की शुरुआत हुई (महाबलीपुरम में शोर मंदिर)

दशकुमारचरित के लेखक दण्डी नरसिंह वर्मन द्वितीय के दरबार में रहते थे । कांची के मुक्तेश्वर मंदिर तथा बैकुंठ पेरुमल मंदिर का निर्माण नंदी वर्मन द्वितीय ने कराया। प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरुमङगई अलवार नन्दी वर्मन के समकालीन थे।

वर्धन वंश

गुप्त वंश के पतन के बाद जिन नए राजवंशों का उदय हुआ उनमे मौखरि, मैत्रक , पुष्यभूतिपरवर्ती गुप्त और गौंड प्रमुख है
इन राजवंशों में पुष्यभूति वंश के शासकों ने सबसे विशाल साम्राज्य स्थापित किया।
पुष्यभूति वंश के संस्थापक पुष्यभूति थे इनकी राजधानी थानेश्वर थी।

प्रभाकरवर्धन  इस वंश की स्वतंत्रता का जन्मदाता था तथा प्रथम प्रभावशाली शासक जिसने परमभटटारक और महाराजाधिराज जैसी सम्मानजनक उपाधि धारण की ।

प्रभाकर वर्धन की पत्नी यशोमती के दो पुत्र राजवर्धन एवं हर्षवर्धन हुए तथा एक कन्या भी जिसका नाम राजश्री था।

राजश्री का विवाह कन्नौज के मौखरि शासक ग्रहवर्मा के साथ हुआ था।
मालवा के शासक देवगुप्त ने वर्मा की हत्या कर दी और राजश्री को बंदी बना लिया । राजवर्धन ने देवगुप्त को मार डाला परंतु उसके  मित्र गौंड नरेश शशांक ने धोखा देकर राज्यवर्धन की हत्या कर दी।

शशांक शैव धर्म का अनुयाई था जिसने बोधि वृक्ष को कटवा दिया ।

राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद 606 ई. में  16 वर्ष की अवस्था में राज्यवर्धन थानेसर की गद्दी पर बैठा ।
हर्ष को शिलादित्य के नाम से भी जाना जाता था। जिसने परमभटटारक नरेश की उपाधि धारण की थी।

हर्ष ने शशांक को पराजित करके कन्नौज पर अधिकार कर लिया तथा उसे अपनी राजधानी बनाया।
हर्ष और पुलकेशिन द्वितीय के बीच नर्मदा नदी के तट पर युद्ध हुआ जिसमें हर्ष को पराजय मिली ।

चीनी यात्री हेनसांग हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया।  इसे यात्रियों में राजकुमार,  निति का पंडित एवं वर्तमान शाक्यमुनि कहा गया।

वह  नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने एवं बौद्ध ग्रंथ संग्रह करने के उद्देश्य भारत आया था।

हर्ष  ने 641ई.में अपने दूत चीन  भेजें तथा 643 ई. एवं 445 ई में दो  चीनी दूत उसके दरबार में आये । हर्ष ने कश्मीर के शासक से बुद्ध के दांत अवशेष बलपूर्वक प्राप्त किये।

हर्ष के पूर्वज भगवान शिव और सूर्य के अनन्य उपासक थे प्रारंभ में हर्ष भी अपने कुल देवता शिव के परम भक्त था ।
चीनी यात्री ह्वेनसांग से मिलने के बाद उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया।
हर्ष के समय में नालंदा महाविहार महायान बौद्ध धर्म की शिक्षा का प्रधान केंद्र था।
हर्ष के समय में प्रयाग में प्रति पांचवे वर्ष वार्षिक समारोह आयोजित किया जाता था जिसे महामोक्षपरिषद कहा जाता था ।

बाणभट्ट हर्ष के दरबारी कवि थे उन्होंने हर्षचरित एवं कादंबरी की रचना की ।

प्रियदर्शिका रत्नावली तथा नागानंद नाम 3 संस्कृत नाटक ग्रंथों की रचना हर्ष ने की थी कहा जाता है कि धावक नामक कवि ने हर्ष से पुरस्कार लेकर उसके नाम से यह 3 नाटक लिख दिए ।

हर्ष को भारत का अंतिम हिंदू सम्राट कहा गया है लेकिन वह ना तो कट्टर हिंदू था और ना ही सारे देश का शासक है ।

हर्ष के आधिन्स्थ शासक महाराज अथवा महासामंत कहे जाते थे।
मंत्रिपरिषद में मंत्री को सचिव यह कहा जाता था। प्रशासन की सुविधा के लिए हर्ष का साम्राज्य कई प्रांतों में विभाजित था।

प्रांतों को भुक्ति कहा जाता था और प्रतेक भुक्ति का शासक राजस्थानिक , उपरिक ,  कहा जाता था।

हर्षचरित मे प्रांतीय शासक के लिए लोकपाल शब्द आया है भुक्ति का विभाजन जिलों में हुआ था और जिले की संज्ञा विषय थी जिसका प्रधान विषयपति

विषय के  अंतर्गत पाठक (आधुनिक तहसील)होते थे । ग्राम ,शासन की सबसे छोटी इकाई थी ।ग्राम शासन का प्रधान ग्रामाक्षपटलिक कहा जाता था।

पुलिसकर्मियों को चाट या भाट कहा गया है ।
दंडपाशिक तथा दाण्डिक पुलिस विभाग के अधिकारी होते थे ।
अश्वसेना के अधिकारियों को बृहदेश्वर। तथा  पैदल सेना के अधिकारियों को बलाधिकृत तथा महाबलाधिकृत कहा जाता था।

हर्षचरित में सिंचाई के साधन के रूप में तुला यंत्र का उल्लेख मिलता है हर्ष के समय मथुरा सूती वस्त्रो के निर्माण के लिए प्रसिद्ध थी ।

हर्षचरित के अनुसार हर्ष की मंत्री परिषद

भंडी            -   प्रधान सचिव

सिंहनाद       -  प्रधान सेनापति

कुन्तल        - अश्वसेना का प्रधान

स्कन्दगुप्त    -  गज सेना का प्रमुख