Friday, October 6, 2017

विजयनगर साम्राज्य ( संगम वंश )

विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 में हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने की थी जो पांच भाइयों के परिवार के अंग थे ।

विजय नगर का शाब्दिक अर्थ -जीत का शहर

हरिहर एवं बुक्का ने विजय नगर की स्थापना विद्यारण्य संत से आशीर्वाद प्राप्त करके की थी ।

हरिहर एवं बुक्का ने अपने पिता संगम के नाम पर संगम राजवंश की स्थापना की।

विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हंपी थी विजयनगर साम्राज्य के खंडहर तुंगभद्रा नदी पर स्थित हैं जिनकी राजभाषा तेलगु थी।

हरिहर एवं बुक्का पहले वारंगल के काकतीय शासक  प्रताप रुद्रदेव के सामंत थे ।

विजयनगर साम्राज्य क्रमश: निम्न वंशो ने शासन किया-
(1) संगम
(2)सलुब
(3)तुलुब
(4)अरावीडू

बुक्का प्रथम ने वेद मार्ग प्रतिष्ठापक की उपाधि धारण की ।
हरिहर द्वितीय ने संगम शासकों में सबसे पहले महाराजाधिराज की उपाधि धारण की ।

इटली यात्री निकोलो कांटी विजयनगर की यात्रा पर देवराय प्रथम के शासनकाल में आया ।

देवराय प्रथम में तुंगभद्रा नदी पर एक बांध बनवाया था कि जल की कमी को दूर किया जा सके सिंचाई के लिए उसने हरिद्र नदी पर बांध बनवाया ।

संगम वंश का सबसे प्रतापी राजा देवराय द्वितीय था जिसे इमाडिदेवराय भी कहा जाता है ।

फारसी राजदूत अब्दुल रज्जाक देवराय द्वितीय के दरबार में आया था।

प्रसिद्ध तेलुगु कवि श्रीनाथ कुछ दिनों तक देवराय द्वितीय के दरबार में रहे।

फरिश्ता के अनुसार देवराय  ने अपनी सेना में 2000 मुसलमानों को भर्ती किया था और उन्हें जागिरे दी थी।

एक अभिलेख में देवराय द्वितीय को जगबेटकर (हाथियों का शिकारी )कहा गया है ।

देवराय द्वितीय ने संस्कृत ग्रंथ महानाटक सुधानिधि एवम ब्रह्म सूत्र पर भाष्य लिखा।

मल्लिकार्जुन को पौढ़ देवराय भी कहा जाता है।

सालुब नरसिंह ने विजय नगर में दूसरे राजवंश सालुब वंश की स्थापना की।

सालुब वंश के बाद विजयनगर पर तुलुव वंश का शासन स्थापित हुआ ।

तुलुब वंश 1505 से 1565 तक चला इसकी स्थापना वीर नरसिंह ने की थी।

तुलुब वंश का महान शासक कृष्णदेव राय था वह 8 अगस्त 1509 को शासक बना।

सालुब तिम्मा कृष्णदेवराय का योग्य मंत्री एवं सेनापति था ।

बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में कृष्णदेवराय को भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बताया था।

कृष्णदेव राय के शासनकाल में पुर्तगाली यात्री डोमिगोस पायस विजयनगर आया था ।

कृष्ण देवराय के दरबार तेलुगु साहित्य के 8 सर्वश्रेष्ठ कवि रहते थे जिन्हें अष्टदिग्गज कहा जाता था।

उस के शासनकाल को तेलुगु साहित्य का क्लासिक युग कहा गया है

कृष्ण देवराय ने तेलुगु में अमुक्तमाल्याद एवं संस्कृत में जाम्बवती कल्याणम की रचना की।

पांडुरंग महात्माय की रचना तेनालीराम रामकृष्ण ने की थी ।

नागलपुर नामक नए नगर,  हजारा एवं विट्ठल स्वामी मंदिर का निर्माण कृष्ण देवराय ने किया।

कृष्ण देवराय  की मृत्यु 1529 में हो गई।

कृष्णदेवराय ने आंध्र भोज , अभिनव भोज, आंध्र पितामह की उपाधि धारण की थी।

तुलुव वंश का अंतिम शासक सदाशिव था।

सल्तनत कालीन विभाग एवं उनके कार्य

विभाग                           बनाने वाला सुल्तान

दीवान-ए-मुस्तखराज(वित्त)       अलाउद्दीन खिलजी

दीवान-ए-कोही (कृषि)              मुहम्मद बिन तुगलक

दीवान-ए-अर्ज (सैन्य )                       बलवन

दीवान-ए-बंदगान                        फिरोजशाह

दीवान-ए-खैरात                          फिरोजशाह

दीवान-ए-इस्तिहाक                     फिरोजशाह

               राजस्व (कर) व्यवस्था

उश्र - मुसलमानों से लिया जाने वाला भूमि कर।

खरात -गैर मुस्लिमो से लिया जाने वाला  भूमि कर।

जकात- मुस्लमानो पर धार्मिक कर (सम्पत्ति का 40वां भाग)

जाजिया - गैर मुस्लिमो पर धार्मिक कर ।

खम्स-लूटे हुए खजाने या गड़े हुए खजाने पर कर।

केंद्रीय प्रशासन का मुखिया- सुल्तान

बलबन एवं अलाउद्दीन के समय अमीर प्रभावहीन हो गए ।

अमीरों का महत्व चरमोत्कर्ष पर था - लोदी वंश के शासनकाल में

सल्तनत काल में मंत्रिपरिषद को मजलिस- ए -खलवत कहा जाता था ।

मजलिस-ए-खास में मजलिस-ए-खलवत  की बैठक होती थी ।

बार-ए-आजम इसमें सुल्तान सभी दरबारियों, खानों, अमीरों, मालिकों को बुलाता था ।

बार -ए -आजम -सुल्तान राजकीय कार्यों का अधिकांश भाग पूरा करता था ।

वजीर - राजस्व विभाग का प्रमुख था।

मुशरिफ-ए-मुमालिक ( महालेखाकार) - प्रांतों एवं अन्य विभागों से प्राप्त आय एवं व्यय का लेखा जोखा रखता था ।

मजमुआदर- उधार लिए गए धन का हिसाब रखता था।

खजीन - कोषाध्यक्ष।

आरिज-ए- मुमालिक -दीवान ए अर्ज अथवा अन्य सैन्य  विभाग का  प्रमुख अधिकारी।

सद्र-उस- सुदूर - धर्म विभाग एवं दान विभाग का प्रमुख ।

काजी-उल-कजात- सुल्तान के बाद न्याय का सर्वोच्च अधिकारी ।

बरीद-ए-मुमालिक -गुप्तचर विभाग का प्रमुख अधिकारी ।

वकील-ए-दर - सुल्तान की व्यक्तिगत सेवाओं का देखभाल करता था ।

दीवान-ए-खैरात  - दान विभाग।

दीवान-ए-बंदगान- दास विभाग ।

दीवान- ए - इस्तिहाक - पेंशन विभाग ।

दिल्ली सल्तनत अनेक प्रांतों में बटा हुआ जिसे इक्ता या सूबा कहा जाता था।  यहां का शासन नायब या अली या मुक्ति द्वारा संचालित होता था।

इक्ताओ को शिको (जिलों) में विभाजित किया गया था जहां का प्रमुख अधिकारी की शिकदार होता था जो सैनिक का अधिकारी  होता था।

शिको को परगनों विभाजित किया गया था आमिल परगने मुख्य अधिकारी था और मुशरिफ लगान सुनिश्चित करने वाला अधिकारी था ।

1 शहर या 100  गांव का शासन देखरेख अमीर-ए -सदा नामक अधिकारी करता था प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होती थी ।

सुल्तान की अस्थाई सेना को खासखेल नाम दिया गया था मंगोल सेना के वर्गीकरण के दशमलव प्रणाली को  सल्तनत कालीन सैन्य का आधार बनाया गया था।

सल्तनत काल में बारूद की सहायता से गोला फेंकने वाली मशीन को मंगलीक  तथा अर्राद कहा जाता था।

अलाउद्दीन खिलजी ने इक्ता प्रथा समाप्त किया था इसका प्रथा को दोबारा शुरुआत फिरोज तुगलक ने की थी सल्तनत काल में अच्छी नस्ल के घोड़े तुर्की , अरब एवं रूस से मंगाए जाते थे हाथी मुख्यता बंगाल से ।

सल्तनत कालीन कानून शरीयत कुरान या हदीस पर आधारित था।

मुस्लिम कानून के चार   प्रमुख स्रोत थे-  कुरानहदीस , इजमा, एवं कयास

सुल्तान सप्ताह में दो बार दरबार में न्याय करने के लिए उपस्थित होता था ।
सल्तनत काल में लगान निर्धारित करने की मिश्रित प्रणाली को मुक्ताई कहा गया है ।

भूमि की नाप जोख करने के बाद है क्षेत्रफल के आधार पर लगान का निर्धारण मसाहत कहलाता था ।
जिसकी शुरुआत अलाउद्दीन ने की थी।

पूर्णता केंद्र के नियंत्रण में रहने वाली भूमि को खालसा भूमि कहा जाता था ।

अलाउद्दीन ने दान में दी गई अधिकांश भूमि को छीन  कर खालसा भूमि परिवर्तित कर दिया ।

देवल सल्तनत काल में अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह के रूप में प्रसिद्ध था ।

स्थान              प्रसिद्धि का कारण

सरसुती                  अच्छी किस्म के चावल के लिए

आन्हिवाडा          व्यापारियों के तीर्थ स्थल के रूप में

सतगाँव                 रेशमी रजाइयों के लिए

आगरा                     नील उत्पादन के लिए

बनारस              सोने चांदी एवं जड़ी के काम के लिए


Thursday, October 5, 2017

लोदी वंश (1451- 1526)

लोदी वंश का संस्थापक बहलोल लोदी था।
वह 19 अप्रैल 1451 को  बहलोल शाह गाजी की उपाधि से  दिल्ली के सिंहासन पर बैठा ।

दिल्ली पर प्रथम अफगान राज्य की स्थापना का श्रेय बहलोल लोदी को दिया जाता है।
बहलोल लोदी ने बहलोल सिक्के का प्रचलन कर आया ।
वह अपने सरदारों को मकसद-ए-अली कह कर पुकारता था।
वह अपने सरदारों के खड़े रहने पर स्वयं भी खड़ा रहता था ।
बहलोल लोदी का पुत्र निजाम खान 17 जुलाई 1489 सुल्तान सिकंदर शाह की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा ।
1504  में सिकंदर लोधी ने आगरा शहर की स्थापना की ।

भूमि मापन के लिए  प्रमाणिक पैमाने गजे सिकंदरी का प्रचलन सिकंदर लोदी ने किया।

गुलरूखी शीर्षक से फारसी कविताएं लिखने वाला सुल्तान सिकंदर लोदी था ।
सिकंदर लोधी ने आगरा को अपनी नई राजधानी बनाया उसके आदेश पर संस्कृत की एक आयुर्वेदिक ग्रंथ को फारसी में परहगे सिकंदरी के नाम से अनुवाद कराया।  इसने नगरकोट के ज्वालामुखी मंदिर की मूर्ति को तोड़कर उसके टुकड़े को कसाईयों को मांस तौलने के लिए दे दिया था ।

मुसलमानों को ताजिया निकालने और मुसलमान स्त्रियों के पीरो एवं संतों की मजार पर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया।

गले की बीमारी के कारण सिकंदर लोदी की मृत्यु 21 नवंबर 1517 में हो गई इसी दिन इसका पुत्र इब्राहिम इब्राहिम शाह की उपाधि से आगरा के सिंहासन पर बैठा ।

21 अप्रैल 1526 में पानीपत का प्रथम युद्ध इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच हुआ जिसमें लोधी हार गया और मारा गया।

बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए निमंत्रण पंजाब के शासक दौलत खान लोदी एवं  इब्राहिम लोदी के चाचा( आलम खां ) ने दिया था। मोठ की मस्जिद का निर्माण सिकंदर लोदी के वजीर द्वारा कराया गया था।

Friday, September 29, 2017

सय्यैद वंश ( 1414- 1451ई.)

सैयद वंश का संस्थापक खिज्र खां था इसने सुल्तान की उपाधि न धारण कर अपने को रैयत आला की उपाधि से ही खुश रखा ।

खिज्र खां  तैमूर लंग का सेनापति था भारत से लौटते समय तैमूर लंग ने खिज्र खां को मुल्तान लाहौर एवं दीपालपुर का शासक नियुक्त किया।

खिज्र खां नियमित रूप से तैमूर के पुत्र शाहरुख को कर भेजता था।

चित्र खां की मृत्यु 20 मई 1421 में हो गई ।खिज्र खां के पुत्र मुबारक खा ने शाह की उपाधि धारण की।

याहिया बिन अहमद सरहिंदी को मुबारक शाह का संरक्षण प्राप्त  था इसकी पुस्तक तारीख ए मुबारक शाही में सैय्यद वंश के विषय में जानकारी मिलती है।

यमुना के किनारे मुबारकाबाद की स्थापना मुबारक शाह ने की थी।

सैय्यद वंश का अंतिम सुल्तान अलाउद्दीन आलमशाह था ।

सैय्यद वंश का शासन करीब 37 वर्षों तक रहा।

तुगलक वंश

5 सितंबर 1320 ईस्वी में खुशरों खा को पराजित करके गाजी मलिक या तुगलक गाजी,  गयासुद्दीन तुगलक के नाम से 8 सितंबर 1320 ईस्वी को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।

गयासुद्दीन तुगलक ने करीब 29 बार मंगोल आक्रमण को विफल किया।
गयासुद्दीन ने अलाउद्दीन के समय मे लिए  गए अमीरों की भूमि को पुनः लौटा दिया।
इसमें सिंचाई के लिए कुएं एवं नहरों का निर्माण करवाया संभवता नहरों का निर्माण करवाने वाला गयासुद्दीन प्रथम शासक था।

गयासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली के समीप स्थित पहाड़ियों पर तुगलकाबाद नाम का एक नया नगर स्थापित किया, रोमन शैली में निर्मित इस नगर में एक दुर्ग का निर्माण भी हुआ इस दुर्ग को छप्पनकोट के नाम से जाना जाता है ।

गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु 1325 ईस्वी में बंगाल के अभियान से लौटते समय जूना खा के द्वारा बनाए लकड़ी के महल में दबकर हो गई ।

गयासुद्दीन के बाद जूना खा मोहम्मद बिन तुगलक के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा ।
मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मोहम्मद तुगलक सार्वअधिक शिक्षित,  विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था।

मोहम्मद बिन तुगलक को अपनी सनक भरी  परियोजनाओं , क्रूर कृत्य एवं दूसरे के सुख-दुख के प्रति उपेक्षा भाव् रखने के कारण उसे  स्वपनशील, पागल एवं रक्त पिपासु कहा गया ।

मोहम्मद बिन तुगलक ने कृषि के विकास के लिए अमीर ए कोही नामक एक नवीन विभाग की स्थापना की ।
मोहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरी स्थानांतरित की और इसका नाम दौलताबाद रखा ।
सांकेतिक मुद्रा के अंतर्गत मोहम्मद बिन तुगलक ने पीतल (फरिश्ता के अनुसार ) तांबा (बरनी के अनुसार) धातुओं के सिक्के चलवाए जिनका मूल्य चांदी के रुपए टंका के बराबर ही होता था।

अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता लगभग 1333 ई में भारत आया सुल्तान ने इसे दिल्ली का काजी नियुक्त किया।

1342 ईस्वी में सुल्तान ने इसे अपने राजदूत के रूप में चीन भेजा इब्नबत्तूता की पुस्तक रेहला में मोहम्मद तुगलक के समय की घटनाओं का वर्णन है इसने अपनी पुस्तक में विदेशी व्यापारियों के आगमन डाक चौकियों की स्थापना यानी डाक व्यवस्था एवं गुप्तचर व्यवस्था के बारे में लिखा ।

मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु 20 मार्च 1351 ई में सिंधु जाते समय खट्टा के निकट गोडाल में हो गई।

मोहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में दक्षिण में हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने 1336 में स्वतंत्र राज्य विजय नगर की स्थापना की ।

महाराष्ट्र में अलाउद्दीन बहमन शाह ने 1347 ई  में स्वतंत्र राज्य बहमनी राज्य की स्थापना की ।

मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु पर इतिहासकार बरनी लिखता है अंततः लोगों को उस से मुक्ति मिली और उसे लोगों से ।

मोहम्मद बिन तुगलक शेख अलाउद्दीन का शिष्य था वह सल्तनत का पहला शासक था जो अजमेर में शेख मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह और बहराइच से सलार मसूद गाजी के मकबरे में गया ।

मोहम्मद बिन तुगलक ने बदायूं में मीरन मुलहीम,
दिल्ली के शेख निजामुद्दीन औलिया ,
मुल्तान के शेख रुकनुद्दीन और

अजुधन  के शेख मुल्तान आदि संतो की कब्र पर मकबरे बनवाए।

फिरोज तुगलक का राज्यभिषेक थट्टा के नजदीक 20 मार्च 1351ई को हुआ पुन: फिरोज का राज्यभिषेक दिल्ली में अगस्त 1351 ई में हुआ । खलीफा द्वारा इसे कासिम अमीर उल मोममीन की उपाधि दी गयी ।

राज व्यवस्था के अंतर्गत फिरोज ने अपने शासनकाल में 24 कष्टदायक करों को समाप्त कर केवल चार कर खराज ( लगान) , ख़ुम्स (युद्ध में लूट का माल) एवं जजिया , जकात कर वसूल करने का आदेश दिया।

जाजिया कर ब्राम्हणों भी लागू किया गया । फिरोज तुगलक ने 5 बड़ी नहर का निर्माण कराया।

  फिरोज तुगलक ने 300 नये नगरों की स्थापना की इसमें हिसार, फिरोजाबाद ,फतेहाबाद ,जौनपुर, फिरोजपुर, प्रमुख है ।

इस के शासनकाल में खिजराबाद (टोपरा गाँव )  एवं मेरठ से अशोक की दो स्तंभो को लाकर दिल्ली में स्थापित किया गया ।

सुल्तान फिरोज तुगलक में अनाथ मुस्लिम महिलाओं विधवा को एवं लड़कियों की सहायता के लिए नये विभाग दीवान ऐ खैरात की स्थापना की ।

सल्तनत कालीन  सुल्तानों में फिरोज के शासनकाल में सबसे अधिक दासो की संख्या लगभग एक लाख 80 हजार थी ।

फिरोज तुगलक के समय में दासो  की देखभाल के लिए फिरोज ने एक नए विभाग दीवान ए बंदगान की स्थापना की।

सैन्य पदों को वंशानुगत कर दिया उसने अपनी आत्मकथा फतूहात ए फिरोजशाही की रचना की। इसने जियाउद्दीन बरनी एवम सम्स सिराज अफीफ तो अपना संरक्षण प्रदान किया ।

इसने ज्वालामुखी मंदिर के पुस्तकालय से लूटे गए 1300 ग्रंथों में से कुछ को फारसी के विद्वान अलाउद्दीन द्वारा द्लायते फिरोजशाही नाम से अनुवाद कराया।

इसने  चांदी तांबा मिश्रित सिक्के भारी मात्रा में जारी करें जिन्हे अद्धा एवं भिख कहा जाता था।

फिरोज तुगलक की मृत्यु सितंबर 1388 हो गई।

फिरोज के काल में निर्मित खान ए जहां तेलंगानी के मकबरा की तुलना जेरुशलम में निर्मित उमर के मस्जिद से की जाती है।

सुल्तान फिरोज ने दिल्ली में कोटला फिरोजशाह दुर्ग का निर्माण कराया।

तुगलक वंश का अंतिम शासक नसीरुद्दीन मुहम्मद तुगलक था इसका शासन दिल्ली से पालम तक ही रह गया था ।

तैमूरलंग ने सुल्तान नसीरुद्दीन मुहम्मद तुगलक के समय 1398 में दिल्ली पर आक्रमण किया ।

नसीरुद्दीन के समय में ही मलिकुशर्शक ( पूर्वाधिपति)  की उपाधि धारण कर एक हिजड़ा मलिक सरवर ने जौनपुर में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना किए।

Monday, September 25, 2017

सल्तनत काल

सल्तनत काल में आने वाले वंशो को याद करने के लिए ट्रिक

गुल खिले तुम सायद लोगे

गुल - गुलाम वंश

खिले - खिलजी

तुम - तुगलक

सायद - सैय्यद

लोगे - लोदी

                        - गुलाम वंश -

गुलाम वंश की स्थापना 1206 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया था। वह गौरी का गुलाम था।
कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपना राज्यभिषेक 24 जून 1206ई. में किया था । ऐबक ने अपनी राजधानी लाहौर में बनाई थी । क़ुतुबमीनार की नीव  कुतुबुद्दीन ऐबक ने ही डाली थी ।दिल्ली का कुवत उल इस्लाम मस्जिद एवं अजमेर का ढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण ऐबक ने कराया था ।

कुतुबुद्दीन एबक को लाख बख्श ( लाखों का दान करने वाला) भी कहा जाता था। प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय को ध्वस्त करने वाला ऐबक का सहायक सेनानायक बख्तियार खिलजी था ।

ऐबक की मृत्यु 1210 ईस्वी में चौगान खेलते समय घोड़े से गिरकर हो गई इससे लाहौर में दफनाया गया।

ऐबक का उत्तराधिकारी आरामशाह हुआ जिसने सिर्फ 8 महीने तक शासन किया आरामशाह की हत्या करके इल्तुतमिश 1211 ईस्वी में दिल्ली की गद्दी पर बैठा । इल्तुतमिश तुर्किस्तान का इल्बरी तुर्क एवं ऐबक  का गुलाम तथा दमाद था ।

यह ऐबक की मृत्यु के समय में बदायूं का गवर्नर था इल्तुतमिश लाहौर से राजधानी को स्थानांतरित कर के दिल्ली ले आया। इल्तुतमिस पहला शासक था जिसने 1229ई. में बगदाद के खलीफा से सुल्तान पद की वैधानिक उपाधि प्राप्त की थी ।

उसकी मृत्यु अप्रैल 1236 ई. में हो गई। इल्तुतमिश के बाद उसका पुत्र  रुक्नुद्दीन फिरोज गद्दी पर बैठा । यह अयोग्य शाशक था उसने अल्पकालीन शासन पर उसकी मां शाह तुरकान छाई रही । के अवांछित प्रभाव से परेशान होकर तुर्की अमीरों ने को रुक्नुद्दीन  को हटाकर रजिया को सिंहासन पर आसीन किया ।

इस प्रकार रजिया बेगम प्रथम मुस्लिम महिला थी जिसने शासन की बागडोर संभाली।
रजिया ने प्रदा प्रथा का त्याग कर तथा पुरुषों की तरह चोंगा( काबा) एवं कुलाह (टोपी) पहनकर दरबार में खुले मुंह से जाने लगी।

रजिया ने मलिक जमालउद्दीन याकूत को आमिर-ऐ-अखुर (घोड़े का सरदार )नियुक्त किया । गैर तुर्को को सामन्त बनाने के रसिया के प्रयासों से तुर्की अमीर विरुद्ध हो गए और उसे बंधी बनाकर दिल्ली की गद्दी पर मोइनुद्दीन बहरामशाह को को बैठा दिया ।

रजिया की शादी अल्तुनिया के साथ हुई उसने शादी के बाद रजिया को पुनः गद्दी प्राप्त करने का प्रयास किया लेकिन वह असफल रहा । रजिया की हत्या 1240 ई में डाकुओं द्वारा कैलाश के पास कर दी गई।

बहरामशाह को बंदी बनाकर उसकी हत्या मई 1242 ई में कर दी गई 
बहराम शाह के बाद दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन मसूद शाह 1242 ई में बना।

बलवन ने षड्यंत्र के द्वारा 1246 में अलाउद्दीन मसूद शाह सुल्तान पद से हटाकर नसीरुद्दीन मोहम्मद को सुल्तान बना दिया । नसीरुद्दीन मोहम्मद अहमद ऐसा सुल्तान था जो टोपी सी कर अपना जीवन निर्वाह करता था ।

बलवन ने अपनी पुत्री का विवाह नसीरुद्दीन मोहम्मद के साथ किया था बलवंत का वास्तविक नाम बहाउद्दीन था वह  इल्तुतमिश का गुलाम था ।

तुर्कान ए चिहलगानी का विनाश बलवन ने ही किया था बलवान 1206 ईस्वी में गयासुद्दीन बलबन के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा ।

वह मंगोल के आक्रमण से दिल्ली की रक्षा करने में सफल रहा ।

राज दरबार में सिजदा एवं पैबोस प्रथा की शुरुआत बलवन ने की थी।

बलवन ने फारसी रीति रिवाज पर आधारित नवरोज उत्सव को प्रारंभ कराया।

अपने विरोधियों के प्रति बलबन ने कठोर लौह  एवं रक्त की नीति अपनाई।

नसरुद्दीन मोहम्मद ने बलवान को उल्लू खां की उपाधि प्रदान किया ।

बलवन के दरबार में फारसी प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो एवं अमीर हसन रहते थे गुलाम वंश का अंतिम शासक समसुद्दीन कैमूर था

                - खिलजी वंश -

गुलाम वंश के शासन को समाप्त कर 13 जून 1290 ई में जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने खिलजी वंश की स्थापना की।

इसने किलोखरी को अपनी राजधानी बनाया। जलालुद्दीन की हत्या 1296 ई में उसके भतीजे एवं दामाद अलाउद्दीन खिलजी ने कड़ामानिकपुर (इलाहाबाद) में कर दी ।

22 अक्टूबर 1296 ई में अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान बना ।
अलाउद्दीन के बचपन का नाम अली तथा गुरसाय्प था।

अलाउद्दीन खिलजी ने सेना को नकद वेतन देने एवं स्थाई सेना की नीव रखी।
दिल्ली के शासको में अलाउद्दीन खिलजी के पास सबसे विशाल स्थाई थी।

घोड़ो को दागने एवं सैनिकों के हुलिया रखने की प्रथा की शुरुआत अलाउद्दीन खिलजी ने की।
अलाउद्दीन एवं राजस्व की दर को बढ़ाकर उपज का 1/2 कर दिया इसने ख्म्स (लूट का धन ) में सुल्तान का हिस्सा 1/4 के स्थान पर 3/4 भाग कर दिया।

इसने व्यापारियों में बेईमानी रोकने के लिए कम तोड़ने वाले व्यक्ति के शरीर से मांस काट लेने का आदेश दिया ।

इसने अपने शासनकाल में मूल्य नियंत्रण प्रणाली को दृढ़ता से लागू किया ।
दक्षिण भारत की विजय के लिए अलाउद्दीन ने मलिक काफूर को भेजा ।

जमायत खाना मस्जिद , अलाई दरवाजा , सीरी का किला तथा हजार खंभा महल का निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने कराया था।

दैवी अधिकार के सिद्धांत को अलाउद्दीन ने चलाया था ।
सिकंदर ए सानी की उपाधि से स्वयं को अलाउद्दीन खिलजी ने विभूषित किया ।
अलाउद्दीन ने मलिक की याकूब को दीवान ए रियासत नियुक्त किया था

अलाउद्दीन द्वारा नियुक्त परवाना नवीस नामक अधिकारी वस्तुओं की परमिट जारी करता था।
शाहना ए मंडी -जहां खदानों की बिक्री हेतु लाया जाता था ।

सराय - ए - अदल -  जहां वस्त्र शक्कर जड़ी बूटी मेवा दीपक का तेल व अन्य निर्मित वस्तुएं बिकने के लिए आती थी ।

अलाउद्दीन खिलजी की आर्थिक नीति की व्यापक जानकारी जियाउद्दीन बरनी की कृति तारीख ए फिरोजशाही से मिलती है ।

मुल्य नियंत्रण को सफल बनाने के लिए मुहतसिब  (सेंसर )एवं नाजिर (नापतोल अधिकारी) की महत्वपूर्ण भूमिका थी ।

राजस्व सुधार के अंतर्गत अलाउद्दीन ने सर्वप्रथम मिल्क, इनाम एवं वक्फ़ के अंतर्गत की गई भूमि को वापस लेकर इसे खालसा भूमि बदल दिया।

अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा लगाई जाने वाली दो नवीन कर - (1) चराई कर और (3) गढ़ी कर

गढ़ी कर , मकानो और झोपड़ियों पर लगाया जाता था ।चराइ कर दुधारू पशुओं पर लगाया गया था ।

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु 5 जनवरी 1316ई में हो गयी ।कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी 1984 में दिल्ली के सिंहासन पर बैठा ।

उसे नग्न स्त्री पुरुष की संगत पसंद थी मुबारक खिलजी कभी-कभी राज दरबार में स्त्रियों का वस्त्र पहनकर आता था ।

बरनी के अनुसार मुबारक कभी-कभी मन होकर दरबारियों के बीच दौड़ा करता था ।
मुबारक खान खलीफा की उपाधि धारण की थी मुबारक के वजीर खुसरो खां ने 15 अप्रैल 1320 ईस्वी में इसकी हत्या कर दी और स्वयं दिल्ली के सिंहासन पर बैठा खुसरू खा ने पैगंबर के सेनापति की उपाधि धारण की।